सोमवार, 7 सितंबर 2015

तैलंग स्वामी 1

तैलंग स्वामी अक्सर शाम के समय अपने आश्रम ( बनारस ) से चल कर काल भैरव ( बनारस ) दर्शन को आते थे | वापस लौटते वक्त एक दूध वाले के अनुरोध पर उसके यहाँ दूध पीते थे | कहा जाता है कभी कभी कडाही उठा कर बीस सेर दूध पी जाते थे | बाबा के जाने के बाद शेष दूध को ग्राहक  प्रसाद के रूप में खरीद लेते थे | इस प्रकार उस ग्वाले का सारा  दूध बिक जाता था | जब कभी वे इधर नहीं आते थे तो उसकी बिक्री देर रात गये तक होती रहती थी  |
तैलंग स्वामी  का क्रिया कलाप अदभुत था | कभी कडाके की सर्दी में ठंढे पानी से नहाते थे और कभी प्रचंड  गर्मी में तपते रेत पर लेटे रहते थे | मंगलदास भट्ट  के घर में एक बड़ा  गड्ढा था , जिसमे वे बैठ जाते थे और लोग उन पर ठंढा जल झारी से गिराते थे जिस प्रकार शिवलिंग पर झारी से गिराया जाता है | कभी गंगा में स्नान करने गये तो कई घंटे डुबकी लगाये रहते या शवासन करते हुए दिन भर तैरते रहते थे | उनके सोने का तरीका भी विचित्र था | एक कम्बल बिछाते थे और एक दूसरा कम्बल ओढ़ लेते थे |
तैलंग  स्वामी की और भी कथाएँ लेकर पुन : हाज़िर होऊंगा ॐ

साभार : विश्वनाथ मुखर्जी के पुस्तक से प्राप्त