मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार – 20

सत्य दर्शन : सूक्ष्म दर्शन
हिंदी के प्रसिद्ध समालोचक एवं विद्वान् डा ० नगेन्द्र एक बार अपने मित्र मंडली के साथ पूज्य बाबा के दर्शन के लिए गये | रास्ते में एक सोती में नदी का पानी आ गया था | कपडा खोल कर हीं उसे पार किया जा सकता था | वहां से आश्रम लगभग एक मील दूर था | सभी मित्र तो अंडरवियर पहने पार कर गये किन्तु डा ० नगेन्द्र को इस प्रकार नदी पार करना जंचा नहीं | वे किनारे पर  हीं एक पेंड की छाँव में बैठ  गये | उनके मन में बड़ा मलाल था कि यहाँ तक आ कर भी वे बाबा के दर्शन नहीं कर सके | चुपचाप बैठे रहने से उन्हें झपकी आ गयी | 


       इतने में लगा की कोई जटा जूट धारी साधु उनके समीप आया  - “ क्यों बच्चा तू दर्शन को नहीं गया |”
-    “ सोती में पानी है , कमर से उपर तक | पार नहीं कर सका |”
-    तू डा ० नगेन्द्र है न ? रस सिद्धांतों का पंडित ?”
-    “ जी |”
-    अच्छा , अच्छा | कोई बात नहीं | बाबा तो सर्वत्र है , सर्वव्यापी है | तू यहीं दर्शन कर ले |”
-    अहंकार घोर शत्रु है , वह प्रभु से मिलने नहीं देता | बच्चा तू काम करता जा | शास्त्र महान है | उनके आलोक को फैला |”
-    “ जी |”



-    यह प्रसाद ले और बोल
ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम :
और नगेन्द्र भक्त सोच कि
“संसार पीछे छूट गया और तू भगवान के सम्मुख है | कल्याण है |”
फिर बाबा चले गये | उनकी आकृति बड़ी भव्य थी | निर्वसन दिगम्बर रूप | डा ० नगेन्द्र ने बड़ा संतोष अनुभव किया |
इसी बीच उनके मित्र बाबा के दर्शन कर वापस आ गये थे | उन लोगों ने उन्हें जगाया – “ लो बाबा ने यह
प्रसाद विशेष तौर पर तुम्हारे लिए दिया है |
       डा ० नगेन्द्र ने प्रसाद ग्रहण किया | मित्रों से जो बाबा का वर्णन मिला , वह हू ब हू उस बाबा से मिलता था , जिन्होंने कुछ हीं क्षण पूर्व उन्हें दर्शन दे कर कृतार्थ किया था | वे अचरज में पड़े थे | तो क्या बाबा ने स्वयं सूक्ष्म शरीर में दर्शन  दे कर इन्हें कृतार्थ किया था ?
       मित्र बाबा की प्रशंशा करते अघा नहीं रहे थे और डा ० नगेन्द्र गुमसुम मन हीं मन बाबा को अपना  प्रणाम निवेदित कर रहे थे |
देवरहा बाबा के चरणों में नमन _/\_

साभार : ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त 

रविवार, 8 नवंबर 2015

तैलंग स्वामी 3

प्रारब्ध
       काशी में भवानी प्रसाद ‘ वाचस्पति ’ एक सज्जन थे जो एक अरसे से काला ज्वर का कष्ट भुगत रहे थे | शारीरिक तथा मानसिक कष्ट से पीड़ित थे | मित्रों के सुझाव पर तैलंग स्वामी के पास आये और कष्ट से मुक्ति पाने की प्रार्थना करने लगे |
       सारी बातें सुनने के बाद बाबा ने कहा – “ चलो जरा भांग पीसो |”
       वाचस्पति महाराज सील लोढ़ा ले कर भांग पीसने लगे | पीस जाने के बाद बाबा ने मटर के बराबर भांग की गोली देते हुए कहा – “ इसे खा जाओ | कल से रोज इसी समय आना | यहाँ तुम्हे भांग पीसना तथा खाना पड़ेगा |”
       वाचस्पति बाबा के इस आज्ञा को सुन कर स्तम्भित रह गये | उन्हें यह तो मालूम था कि बाबा लोग भांग गांजे का सेवन करते हैं , किन्तु यह क्या जो नहीं खाते उन्हें भी खिलाते है ! अब वे नित्य आते , भांग पीसते , मटर के बराबर गोली खा कर घर चले जाते थे | यह क्रम लगातार एक माह तक चलता रहा | एक दिन जब वाचस्पति आये तब बाबा ने कैं कर दी | इसके बाद वाचस्पति से कहा गया कि वे  इस जगह को साफ़ कर दें |
       आदेश के अनुसार बिना हिचक के सर्वत्र उन्होंने स्थान को साफ़ कर दिया | बाद में भांग पीसने का कार्यक्रम चालू हुआ |

       इसी प्रकार बाबा ने एक दिन काफी मात्रा में टट्टी कर दी | वाचस्पति को आने पर सफाई करने को कहा गया | इस बार भी उन्होंने बिना हिचके सफाई कर दी | इसके बाद भांग पीसी और खाई गयी |
       इस घटना के दुसरे दिन बाबा ने भांग की गोली खिलाने के बाद कहा – “ अब कल से तुम यहाँ मत आना |”
-    “ क्यों बाबा |”
बाबा ने कहा – “ चार दिन बाद तुम पूर्ण स्वस्थ हो जाओगे | इसी कष्ट के लिए तो तुम यहाँ आते रहे |”
चार दिन बाद वाचस्पति पूर्ण स्वस्थ हो गये |
कभी कभी हमे प्रारब्ध ( पूर्व जन्म ) के कष्ट भुगतने पड़ते हैं , किन्तु किसी सिद्ध की कृपा से उसे भी समाप्त किया जा सकता है |
       साभार – विश्वनाथ मुखर्जी के पुस्तक से प्राप्त

नोट : भांग खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है |

सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

तैलंग स्वामी – 2

हरिश्चन्द्र घाट स्थित श्मसान काशी का प्राचीन श्मसान है | चौक स्थित महाश्मसान के आस पास बस्तियां बस जाने के कारण मणिकर्णिका घाट पर प्राचीन श्मसान आ गया था | यही वजह था कि बाहर से आने वाले अधिकांस शव हरिश्चन्द्र घाट पर आने लगे |
       एक दिन ब्रह्मा सिंह को साथ ले कर तैलंग स्वामी श्मसान की ओर आये | कुछ देर बाद अनेक लोग एक शव को ले कर किनारे पर उतरने लगे | शवयात्रियों के पीछे एक महिला जोर जोर से रोती  हुई आ रही थी |ज्यों हीं शव को लोगों ने श्मसान भूमि पर रखा , त्यों हीं उक्त महिला उस शव  से लिपट गई | बहुत हीं मुश्किल से उक्त महिला को शव से अलग किया गया |
       स्वामी जी ने ब्रह्मा सिंह को शव यात्रियों के पास घटना की जानकारी के लिए भेजा तो पता लगा कि मृत व्यक्ति की पत्नी शव के साथ सती होना चाह रही है | नि:संतान ब्राह्मणी है | दूसरी जाती की होती तो पुनर्विवाह कर लेती |

       सारी बातें सुन लेने के बाद स्वामी जी उक्त महिला के पास आये | उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले “ –शांत हो जा बेटी |”
       स्नेह भरे इस स्वर को सुनते हीं महिला ने एक बार स्वामी जी की तरफ देखा और फिर उनके चरणों में सिर रखते हुए बोली – “मैं अब जीना नहीं चाहती | बाबा जी आप इन लोगों को समझाइये | अब मैं किसके लिए जियूं ?”
       स्वामी जी ने कहा –“ मेरा पैर तो छोड़ तुझे तो अभी जीवित रहना है | पति की सेवा करनी है |”
       पति की सेवा करनी है सुनते हीं उस स्त्री ने चीख कर पूछा “ क्या ?”
       उपस्थित लोग विस्मय से बाबा को देखने लगे | तभी तैलंग स्वामी ने शव के नाभि स्थल में पैर का अंगूठा लगा दिया | क्षण भर बाद लाश कुनमुनाने लगी | स्वामी जी ने कहा – “ इसके बंधन खोल दो |”
       लोग शव के बंधन खोलने लगे शेष लोग चकित दृष्टि से शव को जीवित होते देखने में लगे रहे | स्वामी जी चुपचाप अन्तर्धान हो गये | महिला , जीवित ब्राह्मण तथा साथ आये लोगों में से कोई भी अपनी कृतज्ञता प्रकट नहीं कर सका |
       संत चाहे तो मुर्दा भी जीवित हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं |

तैलंग स्वामी के चरणों में नमन _/\_
साभार : विश्वनाथ मुखर्जी के पुस्तक से प्राप्त |

देवरहा बाबा के चमत्कार 19

मेरा नाम ले कर
बात  1983 की है | अखौरी केदारनाथ छपरा में डाक विभाग के अधीक्षक थे | विजयदशमी के दिन वे खा पी कर रात में सो गये | उनका रसोइया अर्दली ( चपरासी ) के साथ शहर में उत्सव देखने चला गया | आधी रात के बाद वे दोनों लौट आए और घबराते हुए स्वर में दरवाजा खोलने के लिए आवाज़ देने लगे | केदारनाथ की नींद खुल गयी | दरवाजा खोल कर बाहर आये – “ कहो क्या बात है |”
-    “ तलवो के भीतर बहुत तेज दर्द है  , लगता है अभी प्राण निकल जायेंगे | जोर जोर से बेधता है |” अर्दली ने रोते हुए कहा | रोने की आवाज सुन कर केदारनाथ की पत्नी और छोटा भाई दोनों बाहर आ गये | गर्म तेल मलवाया गया किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ | दर्द की बेचैनी बढती गयी | दर्द के मारे आदमी चीखने लगा | केदारनाथ की पत्नी ने कहा – “ बाबा का ध्यान कीजिये |इस कुबेरा (असमय)में वे हीं कुछ कर सकते हैं |”
-    “ प्रसाद है ?”
-     “ जी हाँ है |”
-    “ थोडा प्रसाद इसे खिला दो मैं बाबा का ध्यान करता हूँ | उनकी कृपा हो तो इसकी मर्मान्तक पीड़ा दूर हो जायेगी |”

केदार नाथ ध्यान में लग गये | प्रसाद खा कर अर्सली को थोड़ी राहत मिली | एक घंटे के भीतर दर्द की लहर घट गयी | वेदना की तीव्रता कम हो गयी | उसकी रुलाई बंद हो गयी |
केदारनाथ के छोटे भाई ने अर्दली को रिक्सा से अस्पताल पहुंचाया | उतनी रात को कौन डॉक्टर डेरा पर देखने आता | अस्पताल में भी कोई निदान नहीं हो सका | सुबह जांच करने की बात तय  हुई |लेकिन सुबह जांच करने की नौबत हीं नहीं आई | अर्दली सुबह होते होते तक में बिलकुल ठीक हो गया और काम करने लगा | बाबा के प्रसाद ने हीं उसके कष्ट हर लिए थे |
       बाद में अखौरी केदारनाथ जब पूज्य बाबा के दर्शनों में गये तो बाबा ने स्वत: हीं उनसे कहा – “ भक्त तुम तो अब मेरा नाम ले कर बहुत से रोगियों को अच्छा कर देते हो |
.......मैं भी ऐसा हीं कुछ करता हूँ |”
देवरहा बाबा के चरणों में प्रणाम _/\_
साभार : ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त  

शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 18

तप का फल
( देवरहा बाबा का नाम “ देवरहा ” कैसे पड़ा इसकी कथा )
       काफी पहले की बात है | गोरखपुर जनपद का  मईल गाँव सरयू नदी के कटाव का शिकार हो गया था | वहां के किसान खेती की जमीन और घर को घाघरा ( सरयू ) की धारा में समाते हुए देख कर रो रहे थे | योगिराज ग्रामीणों की बिपति देख कर द्रवित हो गए | उन्होंने ग्राम वासियों को आश्वासन दिया – ‘अब सरजू जी कटाव बंद करेंगी | तट पर मेरी कुटिया डाल दो |’
       गाँव वालों ने बाबा की इच्छानुसार तट पर झोपडी डाल दी और बाबा वहीँ तपस्या में लग गये | तप के फलस्वरूप नदी का कटाव बंद हो गया | और धारा की दिशा बदल गयी | इससे प्रभावित हो कर लोग दर्शनों में आने लगे और दियर ( नदी के किनारे का बालू वाला क्षेत्र ) में रहने के कारण बाबा  ‘ दियरहा ’ बाबा कहलाने लगे जो अब कालान्तर में देवरहा बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं |

       सिद्ध योगी हीं नदी पर ऐसा अनुशासन कर सकते हैं | मुहम्मदाबाद ( गाजीपुर ) के निकट एक गाँव है हरिहरपुर | वहां भी पंजाबियों जैसे गठीले बदन वाले एक सिद्ध पुरुष थें | जिन्होंने गाँव वालों को नदी के कटाव से बचाया था | और बदले में सभी ग्राम वासियों को लंगोटी भर जमीन बाबा के कुटिया के लिए छोड़ना पड़ा था | उनकी समाधि ( लगभग  1920 ई ०  ) के बाद जब ग्रामीणों ने शर्त पालन बंद कर दिया तो फिर कटाव जारी हो गया जिसे काशी के किसी सिद्ध संत ने शर्त पालन करा कर नियमित करवाया था |
       देवरहा बाबा का सम्बन्ध नदियों से गहरा रहा है | उनकी जिन्दगी का अधिकाँश समय नदियों के गोद में हीं व्यतीत हुआ  था | | वे उन्हें माँ की तरह मानते थे अत : उनके कथन पर नदियाँ अपनी दिशा बदल लेती थी |
संतों के प्रेम भक्ति के आगे  उताल तरंगें भी  सिर झुका लेती हैं
देवरहा बाबा की जय _/\_

साभार : ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त  

सोमवार, 7 सितंबर 2015

तैलंग स्वामी 1

तैलंग स्वामी अक्सर शाम के समय अपने आश्रम ( बनारस ) से चल कर काल भैरव ( बनारस ) दर्शन को आते थे | वापस लौटते वक्त एक दूध वाले के अनुरोध पर उसके यहाँ दूध पीते थे | कहा जाता है कभी कभी कडाही उठा कर बीस सेर दूध पी जाते थे | बाबा के जाने के बाद शेष दूध को ग्राहक  प्रसाद के रूप में खरीद लेते थे | इस प्रकार उस ग्वाले का सारा  दूध बिक जाता था | जब कभी वे इधर नहीं आते थे तो उसकी बिक्री देर रात गये तक होती रहती थी  |
तैलंग स्वामी  का क्रिया कलाप अदभुत था | कभी कडाके की सर्दी में ठंढे पानी से नहाते थे और कभी प्रचंड  गर्मी में तपते रेत पर लेटे रहते थे | मंगलदास भट्ट  के घर में एक बड़ा  गड्ढा था , जिसमे वे बैठ जाते थे और लोग उन पर ठंढा जल झारी से गिराते थे जिस प्रकार शिवलिंग पर झारी से गिराया जाता है | कभी गंगा में स्नान करने गये तो कई घंटे डुबकी लगाये रहते या शवासन करते हुए दिन भर तैरते रहते थे | उनके सोने का तरीका भी विचित्र था | एक कम्बल बिछाते थे और एक दूसरा कम्बल ओढ़ लेते थे |
तैलंग  स्वामी की और भी कथाएँ लेकर पुन : हाज़िर होऊंगा ॐ

साभार : विश्वनाथ मुखर्जी के पुस्तक से प्राप्त  

शनिवार, 8 अगस्त 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 17

दही और केले का वह स्वाद !
परम श्रधेय देवरहा बाबा की अनेक लीलाएं समय समय पर होती रहती है | जब तब पूज्य बाबा हृदय की गुप्त बातों को निकाल कर प्रत्यक्ष रख देते थे  | तब दर्शनार्थी आश्चर्य चकित रह जाते थे | यों बाबा की ये चेष्टा बराबर रहती थी कि उनसे कोई चमत्कार न हो , किन्तु कस्तूरी की सुरभि क्या छुपाये छुपती है ? सूरज कब तक ज्योति को  बादलों की ओट में छुपा कर रख सकता है |
       बात 1959 की है | रमाकांत उपाध्याय , पुलिस सब इंस्पेक्टर थे | वे चांदमारी के बाद अपने एक मित्र के साथ बाबा के दर्शनार्थ काशी में अस्सी घाट के उस पार मंच के पास उपस्थित हुए | उपदेशादि में काफी विलम्ब हो गया | जोरों की भूख लगी थी | दोनों मन हीं मन छुट्टी पाने  की अभिलाषा कर रहें थे | इसी बिच बाबा के मुखारविंद से प्रेमपूर्ण वाणी निकली- “ बच्चा बहुत भूखे दिखाई देते हो | जाओ यह प्रसाद रेत पर बैठ कर खा लो | जो बचे वह गंगा जी में प्रवाहित कर देना |”
       प्रसाद के रूप में महराज जी ने एक मटका दही और चार दर्जन केले उन लोगों को दिए | रमाकांत जी स्मारिका  के पृष्ठ 48 पर इस संस्मरण के साथ लिखा है ‘आज तक अपने जीवन में वैसे दही और केले का स्वाद नहीं मिला |’ कैसे मिलता वह स्वाद ? बाबा की कृपा से सना हुआ प्रसाद तो भगवान का प्रसाद है , उससे सांसारिक स्वादों की तुलना क्या हो सकती है |
       बाबा सबके मन की बात जानते थे | वे अन्तर्यामी थे | आज भी सच्चे हृदय से उन्हें पुकार कर तो देखो वे सहाय होंगे |
       देवरहा बाबा के चरणों में सादर प्रणाम _/\_
       साभार : ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 16

बाबा अन्तर्धान हो गए !

मोतिहारी के कृष्णाधार शर्मा एक बार कुछ साथियों के साथ बाबा के दर्शनों में बनारस गये | ट्रेन लेट होने के कारण वे लोग बाबा के मंच के पास बारह बजे दिन में नौका के द्वारा पहुंचे | मंच गंगा की धारा में रामनगर की तरफ था | जब वे लोग ‘ हरे राम संकीर्तन ’ करते हुए मंच के पास पहुंचे तो देखा कि बाबा मंच से उतर कर धारा में स्नान कर रहे हैं | वे लोग संकीर्तन करते हुए नौका में हीं किनारे रुक गए | सबकी नजर बाबा की तरफ हीं थी | सभी बाबा के मंच तक आने का इंतजार करने लगे |
यह क्या ? बाबा स्नान करते करते जल के भीतर बैठ गये | सभी लोग आश्चर्य से देख रहे थे | कीर्तन की धुन अविराम चल रही थी | सबकी नज़रें घड़ी पर थी | ठीक पचपन मिनट तक जल के भीतर रहने के बाद बाबा अचानक मंच के उपर खड़ा हो कर जटा का जल निचोड़ते हुए दिखाई दिए | जल से निकल कर मंच पर चढ़ते हुए उन्हें किसी ने नहीं देखा | एक हीं साथ जल समाधि और अन्तर्धान होने के दृश्य उनलोगों के समक्ष प्रकट हुए |
बाबा इसी तरह घंटों जल में रहने के अभ्यासी थे | अन्तर्धान हो जाते थे | यह बाबा जैसे – अनंत विभूति सम्पन्न योगिराज संत शिरोमणि के लिए हीं संभव है |
देवरहा बाबा के चरणों में सादर प्रणाम _/\_
साभार : प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त
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गुरुवार, 6 अगस्त 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 15

ब्रह्म दर्शन ! 


श्री सुरेन्द्र नारायण सिंह जगदीशनन्दन कॉलेज , मधुबनी , ( बिहार ) में दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक थे | वे वेदांत का अध्यन कर रहे थे | उन्होंने ब्रह्म के बारे में पढ़ा कि ब्रह्म प्रकाश स्वरुप है | उनके मन में यह जिज्ञासा हुई कि क्या उस परम प्रकाश को देखा जा सकता है |
       जब वे पूज्य बाबा के पास पहुंचे तो उन्होंने वेदान्त की बात कही और ब्रह्म के बारे में जिज्ञासा की |
-    “ हाँ बच्चा ! वेदान्त की बात ठीक है | ब्रह्म प्रकाश स्वरुप है |”
-    “ क्या उस प्रकाश को देखा जा सकता है |”
-    “ हाँ , हाँ क्यों नहीं लेकिन तुम इस योग्य नहीं हुए हो कि पूर्ण ब्रह्म का प्रकाश देख सको | हाँ माया मिश्रित प्रकाश देखा जा सकता है | मैं तुम्हें अभी अनुभव कराता हूँ |”
पूज्य बाबा ने उन्हें एक यौगिक क्रिया बताई | उन्होंने उस साधना को उनके निर्देशानुसार किया | भीतर का अन्धकार फटने लगा | प्रकाश की किरणें छिटकने लगी | ज्योति तीव्र होती गयी | प्रकाश की तीव्रता सुरेन्द्र जी की सहन शक्ति से बाहर हो गयी | थोड़ी देर बाद हीं उन्हें वहां से लौटना पड़ा |
श्री बाबा आनन्द विभूति सम्पन्न हैं वे ब्रह्म स्वरुप हैं | भगवान की ज्योति देखना सद्गुरु की करुणा के बिना संभव नहीं है |
देवरहा बाबा के चरणों में प्रणाम _/\_
साभार – प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त 

बुधवार, 5 अगस्त 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 14

यहाँ भी छल !

बाबा मंच पर आसीन थे दर्शनार्थियों की भीड़ लगी हुई थी | स्त्री , पुरुष , धनी ,गरीब सभी थे | अनपढ़ और विद्वान् सभी | पैदल चल कर आने वाले और कार से चल कर आने वाले भी | बबूल बन की छाँव | बाबा एक एक कर या पांच सात को इकठ्ठे बुला कर बातचीत कर रहे थे , आशीष दे रहे थे | एक आदमी सहमा सहमा उपस्थित हुआ | बड़ा दयनीय चेहरा था | बहुत हीं दुखी लग रहा था | किसी को भी देख कर दया आ जाए ऐसा चेहरा बनाया था उसने | लेकिन बाबा की आँखें तो भीतर भेद कर देखती है , उपर का आवरण निरर्थक है | सामने वाला अभिनय में चाहे जितना भी दक्ष हो , बाबा के सामने पड़ते हीं कच्चा चिट्ठा खुल जाता है |
       उस मायूस चेहरे वाले के भीतर प्रवेश करते हीं न जाने क्यों  बाबा क्रोधित हो गये | जोर की कडकती आवाज़ बाहर तक आई | सभी सहम गये | क्षण भर को कीर्तन की लहर थम गयी |
-    “ तू महापापी है घोर नरक में जायेगा | उपर से छल करता है और दिन भर पाप में धंसता जाता है | जा , जा |”
वह व्यक्ति कुछ गिडगिडाया | कुछ आरजू करना चाहा |
-    “ समय नष्ट करना घोर पाप है |तू अपने साथ मेरा और खड़े  इन भक्तों का समय नष्ट क्यों करता है ? तू दिन रात पाप करता रहे और हम उसे  धोते रहे | मनुष्य अपने कर्मों का फल हीं पाता है नीच | यहाँ भी छल करता है !”
लेकिन बाबा ने उसके तरफ भी एक केला फेंक हीं दिया – “ ले प्रसाद और भाग
-    अपने को सुधार ! समय नष्ट मत कर ! ”  
फिर बाबा सहज हो गये | दूसरे जत्थे की पुकार हुई ! वह व्यक्ति पीछे हटते हटते गेट के बाहर आ गया | लोग उसे घूर रहे थे | वह और दयनीय लग रहा था | रामधुन की  मंद  हुई ध्वनी को लक्ष्य कर बाबा ने प्रेमपूर्वक कहा
-    “ नामकीर्तन जारी रखो बच्चा | ”
और फिर जय सियाराम , जय सियाराम की ध्वनि जोर जोर से उठने लगी |
देवरहा बाबा के चरणों में सादर प्रणाम _/\_
-    साभार ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त 

शनिवार, 1 अगस्त 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार - 13

बतासे में कीड़ें !
मार्च 1952 में कुम्भ के शुभ अवसर पर परम पूज्य बाबा हरिद्वार में हीं थे | 13 अप्रैल को कुम्भ का मुहूर्त था | उन्हीं दिनों श्री बाबा के दर्शानार्थ एक बड़ा हीं दीन बिद्यार्थी आया | वह धारा में प्रवेश कर मंच तक पहुंचा और जोर जोर से रोने लगा |
परम दयालु बाबा ने छात्र से रोने का कारण पूछा | छात्र ने जो कुछ भी बताया उसका तात्पर्य था कि वह किसी असाध्य रोग से ग्रस्त था | डाक्टरों के हिसाब से उसका बचना कठिन था | वह बाबा की शरण में आया था |
श्री बाबा ने उसके हाथ में कुछ बतासे गिराए और उन्हें खा जाने का आदेश दिया | परन्तु छात्र उन्हें खाने से झिझकने लगा | उसे बहुतेरे कीड़े कुलबुलाते नजर आने लगे  | उसने चाहा की उन छोटे छोटे कीड़ों को झाड कर निकाल दे और तब बतासे को खा कर आदेश का पालन करे | उसने बाबा से अपनी झिझक का कारण बतलाया | बाबा उसे लक्ष्य कर रहे थे |
बाबा ने छात्र से  कुछ क्षण मौन रह कर कहा –“ देखो तो अब कीड़े हैं या नहीं |”
बिद्यार्थी ने बतासे को गौर से  देखा | अब कीड़े नहीं थे | बतासे बिलकुल साफ़ थे |
-    “ अब तो कीड़े नहीं दिखते |” छात्र ने कहा
-    “ तो प्रसाद ग्रहण करने में कोई हानि नहीं है , क्यों बच्चा ?” बाबा ने कहा |
-    “ जी ! ”  कहकर छात्र ने बतासे को मुंह में डाल लिया |
-    “ देख बच्चा तेरी बिमारी अब बिलकुल भाग गयी | यदि कीड़े तुम्हें दुबारा दिखाई देते तो रोग का निवारण सचमुच नहीं होता |” बाबा ने कहा
बिद्यार्थी गदगद था | उसकी आँखों में कृतज्ञता के आंसू थे | उस छात्र के निकट खड़े भक्त विस्मित थे | उन्हें बतासों में पहले हीं  कोई दोष नजर नहीं आया था | फिर छात्र को उसमे कीड़े कैसे नजर आये ?
बाबा की लीला अपरम्पार है उनकी लीला वही जानें |
देवरहा बाबा के चरणों में सादर नमन _/\_

साभार - ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त 

रविवार, 26 जुलाई 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 12

बाबा के लिए सब कुछ संभव है !
       बाबा बनारस में थे | दिल्ली से डा० सरजू  प्रसाद दर्शनार्थ आये | इनके मित्र प्रसिद्ध साहियात्कर श्री इंद्र नारायण गुर्टू हृदय रोग से पीड़ित थे | वे विलिंगडन अस्पताल में थे | हालत बिलकुल खराब थी | कंठ अवरुद्ध हो गया था | उनके लिए प्रसाद देने की प्रार्थना श्री सरजू  बाबू  ने की | बाबा ने दो संतरे दिए और कहा – “ जाते हीं इनका रस उन्हें पिला दो , वे अच्छे हो जायेंगे | ”
       लौटने पर डा० प्रसाद सीधे अस्पताल गये | रात के आठ बजे होंगे | संतरों का रस निचोड़ कर श्री गुर्टू को पिला दिया गया | उसी रात चार बजे प्रात: श्री गुर्टू अपने बिछावन पर उठ बैठे और जोरों से “ सीताराम सीताराम ”  
का कीर्तन करने लगे | उनकी आवाज़ खुल गयी न जाने उनमे कहाँ से इतनी शक्ति आ गयी कि वे स्वयं उठ कर बैठ गये |
       डा० निराश हो चुके थे श्री गुर्टू का बचना मुश्किल था | सभी को आश्चर्य हो रहा था – रात भर में ऐसा कौन सा चमत्कार हो गया कि उनमे आशातीत सुधार हो गया | जब डाक्टरों को ज्ञात हुआ श्री गुर्टू जी को रात में पूज्य श्री देवरहा बाबा जी  का प्रसाद दिया गया और उन्हीं की कृपा से ऐसा हुआ है तो वे कहने लगे – “ हाँ ,हाँ भाई ! देवरहा बाबा महान योगी एवं संत हैं | वे सर्वशक्तिमान हैं कुछ भी कर सकते हैं | बाबा के लिए सब कुछ संभव है | उनकी कृपा से हीं ऐसा संभव है |
       देवरहा बाबा के चरणों में सादर प्रणाम _/\_
       प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से साभार प्राप्त

शनिवार, 25 जुलाई 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 11

सपने में किया प्रवेश !
पाण्डेय नर्मदेश्वर सहाय , सम्पादक ‘ अंजोर ’ एक ख्यातिलब्ध साहित्यकार और वकील हीं नहीं थे वरन एकांत साधक भी थे , इसे कम लोग हीं जानते हैं | वे परमयोगी श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की शिष्य परम्परा में श्री वनमाली बनर्जी ( भागलपुर ) से दीक्षित थे |एक दिन वे बाबा के श्री चरणों में मंच के निकट बैठे थे | अचानक बाबा ने प्रश्न किया –  “ अरे भक्त कुछ करते हो ?”
-    जी हाँ प्रभु थोडा बहुत |
-    अपनी क्रिया दिखा सकते हो ?
-    क्षमा करें प्रभु ! गुरु की आज्ञा है कि क्रियाएं गुप्त हैं ,परिधि के बाहर के लोगों में इन्हें नहीं दिखाना |
बाबा हँस कर चुप हो गये सहज हीं और और्व बातें होने लगी | कुछ देर बाद बाबा ने प्रशाद दे कर सबकी छुट्टी कर दी | सहाय जी भावुक व्यक्ति थे | उनका मन दुविधा में पड़ा रहा | घर पर आ कर वे खा पी कर सो गये |
       स्वप्ने में हीं उन्होंने देखा कि वे अपने मकान के दूसरी मंजिल पर स्थित एक कमरे में बैठे हैं | सामने वनमाली बनर्जी बैठे हैं और योगाभ्यास करा रहे हैं |
       इसी बिच सहाय जी के पुत्र ने आ कर सूचना दी की एक महात्मा पधारे हैं | बनर्जी साहब ने कहा “ सादर लिवा लाओ |” थोड़ी देर बाद देवरहा बाबा उपर आये | वनमाली बनर्जी बड़े प्रेम से उन्हें मिले और दोनों अगल बगल बैठ गये | सहाय जी की योगक्रिया थोड़ी देर के लिए रूक गयी | वे दुविधा में पड़े रहे | इसी समय उनके गुरुदेव बनर्जी साहब ने कहा – “ अरे रुके क्यों हो ? तुम दिखाओ | इनमे और मुझमे कोई भेद न समझना | ”
       गुरुदेव की आज्ञा से सभी क्रियाओं की पुनरावृति सहाय जी ने की | क्रिया समाप्त होते हीं नींद खुल गयी | सहाय जी स्वप्न का मर्म समझ गये | उन्हें बड़ा मानसिक क्लेश हुआ | देवरहा बाबा को उन्होंने परिधि से बाहर क्यों माना | फिर उन्हें नींद नहीं आई | वे प्रात: हीं उद्विग्न मन से देवरहा बाबा के पास जा कर उपस्थित हुए |
       बाबा स्नान करके ,कुश की आसनी लपेटे बड़ी तेजी से गंगा की धार से निकले और मंच पर चढ़ गये | थोड़ी देर बाद कुटिया से बाहर आये |
       सहाय जी ने  साश्रुनयन निवेदन किया – “ महराज मुझे क्षमा करें | कृपा याचना के लिए आया हूँ | मुझसे बहुत बड़ा अपराध हुआ है |
-    अरे भक्त इस प्रकार चंचल क्यों होते हो |
-    मैं अपनी क्रिया दिखाने आया हूँ महराज !
-    मैं तो देख चुका भक्त ! चिंता मंत करो | कष्ट करने की जरूरत नहीं |
और सहाय जी सन्न रह गये | तो क्या  सचमुच रात के स्वप्न में प्रभु दरी  बाबा ने प्रभु श्री वनमाली बनर्जी के साथ सहाय जी के क्रियाओं अवलोकन किया था ? तभी तो मुस्कान के साथ उन्होंने कहा था –“मैं तो देख चुका |”
देवरहा बाबा के चरणों में सादर  नमन _/\_ 
 प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से साभार प्राप्त