हरिश्चन्द्र घाट स्थित श्मसान काशी का प्राचीन
श्मसान है | चौक स्थित महाश्मसान के आस पास बस्तियां बस जाने के कारण मणिकर्णिका
घाट पर प्राचीन श्मसान आ गया था | यही वजह था कि बाहर से आने वाले अधिकांस शव
हरिश्चन्द्र घाट पर आने लगे |
एक
दिन ब्रह्मा सिंह को साथ ले कर तैलंग स्वामी श्मसान की ओर आये | कुछ देर बाद अनेक
लोग एक शव को ले कर किनारे पर उतरने लगे | शवयात्रियों के पीछे एक महिला जोर जोर
से रोती हुई आ रही थी |ज्यों हीं शव को
लोगों ने श्मसान भूमि पर रखा , त्यों हीं उक्त महिला उस शव से लिपट गई | बहुत हीं मुश्किल से उक्त महिला को
शव से अलग किया गया |
स्वामी
जी ने ब्रह्मा सिंह को शव यात्रियों के पास घटना की जानकारी के लिए भेजा तो पता
लगा कि मृत व्यक्ति की पत्नी शव के साथ सती होना चाह रही है | नि:संतान ब्राह्मणी
है | दूसरी जाती की होती तो पुनर्विवाह कर लेती |
सारी
बातें सुन लेने के बाद स्वामी जी उक्त महिला के पास आये | उसके सिर पर हाथ फेरते
हुए बोले “ –शांत हो जा बेटी |”
स्नेह
भरे इस स्वर को सुनते हीं महिला ने एक बार स्वामी जी की तरफ देखा और फिर उनके
चरणों में सिर रखते हुए बोली – “मैं अब जीना नहीं चाहती | बाबा जी आप इन लोगों को
समझाइये | अब मैं किसके लिए जियूं ?”
स्वामी
जी ने कहा –“ मेरा पैर तो छोड़ तुझे तो अभी जीवित रहना है | पति की सेवा करनी है |”
पति
की सेवा करनी है सुनते हीं उस स्त्री ने चीख कर पूछा “ क्या ?”
उपस्थित
लोग विस्मय से बाबा को देखने लगे | तभी तैलंग स्वामी ने शव के नाभि स्थल में पैर
का अंगूठा लगा दिया | क्षण भर बाद लाश कुनमुनाने लगी | स्वामी जी ने कहा – “ इसके
बंधन खोल दो |”
लोग
शव के बंधन खोलने लगे शेष लोग चकित दृष्टि से शव को जीवित होते देखने में लगे रहे
| स्वामी जी चुपचाप अन्तर्धान हो गये | महिला , जीवित ब्राह्मण तथा साथ आये लोगों
में से कोई भी अपनी कृतज्ञता प्रकट नहीं कर सका |
संत
चाहे तो मुर्दा भी जीवित हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं |
तैलंग स्वामी के चरणों में नमन _/\_
साभार : विश्वनाथ मुखर्जी के पुस्तक से प्राप्त |
साभार : विश्वनाथ मुखर्जी के पुस्तक से प्राप्त |
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