मेरा नाम ले कर
बात 1983
की है | अखौरी केदारनाथ छपरा में डाक विभाग के अधीक्षक थे | विजयदशमी के दिन वे खा
पी कर रात में सो गये | उनका रसोइया अर्दली ( चपरासी ) के साथ शहर में उत्सव देखने
चला गया | आधी रात के बाद वे दोनों लौट आए और घबराते हुए स्वर में दरवाजा खोलने के
लिए आवाज़ देने लगे | केदारनाथ की नींद खुल गयी | दरवाजा खोल कर बाहर आये – “ कहो
क्या बात है |”
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“ तलवो के भीतर बहुत तेज दर्द है , लगता है अभी प्राण निकल जायेंगे | जोर जोर से
बेधता है |” अर्दली ने रोते हुए कहा | रोने की आवाज सुन कर केदारनाथ की पत्नी और
छोटा भाई दोनों बाहर आ गये | गर्म तेल मलवाया गया किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ | दर्द
की बेचैनी बढती गयी | दर्द के मारे आदमी चीखने लगा | केदारनाथ की पत्नी ने कहा – “
बाबा का ध्यान कीजिये |इस कुबेरा (असमय)में वे हीं कुछ कर सकते हैं |”
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“ प्रसाद है ?”
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“ जी हाँ
है |”
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“ थोडा प्रसाद इसे खिला दो मैं बाबा का ध्यान
करता हूँ | उनकी कृपा हो तो इसकी मर्मान्तक पीड़ा दूर हो जायेगी |”
केदार नाथ ध्यान में लग गये | प्रसाद खा
कर अर्सली को थोड़ी राहत मिली | एक घंटे के भीतर दर्द की लहर घट गयी | वेदना की
तीव्रता कम हो गयी | उसकी रुलाई बंद हो गयी |
केदारनाथ के छोटे भाई ने अर्दली को रिक्सा से
अस्पताल पहुंचाया | उतनी रात को कौन डॉक्टर डेरा पर देखने आता | अस्पताल में भी
कोई निदान नहीं हो सका | सुबह जांच करने की बात तय हुई |लेकिन सुबह जांच करने की नौबत हीं नहीं आई
| अर्दली सुबह होते होते तक में बिलकुल ठीक हो गया और काम करने लगा | बाबा के
प्रसाद ने हीं उसके कष्ट हर लिए थे |
बाद
में अखौरी केदारनाथ जब पूज्य बाबा के दर्शनों में गये तो बाबा ने स्वत: हीं उनसे
कहा – “ भक्त तुम तो अब मेरा नाम ले कर बहुत से रोगियों को अच्छा कर देते हो |
.......मैं भी ऐसा हीं कुछ करता हूँ |”
देवरहा बाबा के चरणों में प्रणाम _/\_
साभार : ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त
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