तप का फल
( देवरहा बाबा का नाम “ देवरहा ” कैसे पड़ा इसकी
कथा )
काफी
पहले की बात है | गोरखपुर जनपद का मईल
गाँव सरयू नदी के कटाव का शिकार हो गया था | वहां के किसान खेती की जमीन और घर को
घाघरा ( सरयू ) की धारा में समाते हुए देख कर रो रहे थे | योगिराज ग्रामीणों की
बिपति देख कर द्रवित हो गए | उन्होंने ग्राम वासियों को आश्वासन दिया – ‘अब सरजू
जी कटाव बंद करेंगी | तट पर मेरी कुटिया डाल दो |’
गाँव
वालों ने बाबा की इच्छानुसार तट पर झोपडी डाल दी और बाबा वहीँ तपस्या में लग गये |
तप के फलस्वरूप नदी का कटाव बंद हो गया | और धारा की दिशा बदल गयी | इससे प्रभावित
हो कर लोग दर्शनों में आने लगे और दियर ( नदी के किनारे का बालू वाला क्षेत्र ) में
रहने के कारण बाबा ‘ दियरहा ’ बाबा कहलाने
लगे जो अब कालान्तर में देवरहा बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं |
सिद्ध
योगी हीं नदी पर ऐसा अनुशासन कर सकते हैं | मुहम्मदाबाद ( गाजीपुर ) के निकट एक
गाँव है हरिहरपुर | वहां भी पंजाबियों जैसे गठीले बदन वाले एक सिद्ध पुरुष थें |
जिन्होंने गाँव वालों को नदी के कटाव से बचाया था | और बदले में सभी ग्राम वासियों
को लंगोटी भर जमीन बाबा के कुटिया के लिए छोड़ना पड़ा था | उनकी समाधि ( लगभग 1920 ई ० ) के बाद जब ग्रामीणों ने शर्त पालन बंद कर दिया
तो फिर कटाव जारी हो गया जिसे काशी के किसी सिद्ध संत ने शर्त पालन करा कर नियमित
करवाया था |
देवरहा
बाबा का सम्बन्ध नदियों से गहरा रहा है | उनकी जिन्दगी का अधिकाँश समय नदियों के
गोद में हीं व्यतीत हुआ था | | वे उन्हें
माँ की तरह मानते थे अत : उनके कथन पर नदियाँ अपनी दिशा बदल लेती थी |
संतों के प्रेम भक्ति के आगे उताल तरंगें भी सिर झुका लेती हैं
देवरहा बाबा की जय _/\_
साभार : ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त
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