शनिवार, 8 अगस्त 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 17

दही और केले का वह स्वाद !
परम श्रधेय देवरहा बाबा की अनेक लीलाएं समय समय पर होती रहती है | जब तब पूज्य बाबा हृदय की गुप्त बातों को निकाल कर प्रत्यक्ष रख देते थे  | तब दर्शनार्थी आश्चर्य चकित रह जाते थे | यों बाबा की ये चेष्टा बराबर रहती थी कि उनसे कोई चमत्कार न हो , किन्तु कस्तूरी की सुरभि क्या छुपाये छुपती है ? सूरज कब तक ज्योति को  बादलों की ओट में छुपा कर रख सकता है |
       बात 1959 की है | रमाकांत उपाध्याय , पुलिस सब इंस्पेक्टर थे | वे चांदमारी के बाद अपने एक मित्र के साथ बाबा के दर्शनार्थ काशी में अस्सी घाट के उस पार मंच के पास उपस्थित हुए | उपदेशादि में काफी विलम्ब हो गया | जोरों की भूख लगी थी | दोनों मन हीं मन छुट्टी पाने  की अभिलाषा कर रहें थे | इसी बिच बाबा के मुखारविंद से प्रेमपूर्ण वाणी निकली- “ बच्चा बहुत भूखे दिखाई देते हो | जाओ यह प्रसाद रेत पर बैठ कर खा लो | जो बचे वह गंगा जी में प्रवाहित कर देना |”
       प्रसाद के रूप में महराज जी ने एक मटका दही और चार दर्जन केले उन लोगों को दिए | रमाकांत जी स्मारिका  के पृष्ठ 48 पर इस संस्मरण के साथ लिखा है ‘आज तक अपने जीवन में वैसे दही और केले का स्वाद नहीं मिला |’ कैसे मिलता वह स्वाद ? बाबा की कृपा से सना हुआ प्रसाद तो भगवान का प्रसाद है , उससे सांसारिक स्वादों की तुलना क्या हो सकती है |
       बाबा सबके मन की बात जानते थे | वे अन्तर्यामी थे | आज भी सच्चे हृदय से उन्हें पुकार कर तो देखो वे सहाय होंगे |
       देवरहा बाबा के चरणों में सादर प्रणाम _/\_
       साभार : ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 16

बाबा अन्तर्धान हो गए !

मोतिहारी के कृष्णाधार शर्मा एक बार कुछ साथियों के साथ बाबा के दर्शनों में बनारस गये | ट्रेन लेट होने के कारण वे लोग बाबा के मंच के पास बारह बजे दिन में नौका के द्वारा पहुंचे | मंच गंगा की धारा में रामनगर की तरफ था | जब वे लोग ‘ हरे राम संकीर्तन ’ करते हुए मंच के पास पहुंचे तो देखा कि बाबा मंच से उतर कर धारा में स्नान कर रहे हैं | वे लोग संकीर्तन करते हुए नौका में हीं किनारे रुक गए | सबकी नजर बाबा की तरफ हीं थी | सभी बाबा के मंच तक आने का इंतजार करने लगे |
यह क्या ? बाबा स्नान करते करते जल के भीतर बैठ गये | सभी लोग आश्चर्य से देख रहे थे | कीर्तन की धुन अविराम चल रही थी | सबकी नज़रें घड़ी पर थी | ठीक पचपन मिनट तक जल के भीतर रहने के बाद बाबा अचानक मंच के उपर खड़ा हो कर जटा का जल निचोड़ते हुए दिखाई दिए | जल से निकल कर मंच पर चढ़ते हुए उन्हें किसी ने नहीं देखा | एक हीं साथ जल समाधि और अन्तर्धान होने के दृश्य उनलोगों के समक्ष प्रकट हुए |
बाबा इसी तरह घंटों जल में रहने के अभ्यासी थे | अन्तर्धान हो जाते थे | यह बाबा जैसे – अनंत विभूति सम्पन्न योगिराज संत शिरोमणि के लिए हीं संभव है |
देवरहा बाबा के चरणों में सादर प्रणाम _/\_
साभार : प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त
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गुरुवार, 6 अगस्त 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 15

ब्रह्म दर्शन ! 


श्री सुरेन्द्र नारायण सिंह जगदीशनन्दन कॉलेज , मधुबनी , ( बिहार ) में दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक थे | वे वेदांत का अध्यन कर रहे थे | उन्होंने ब्रह्म के बारे में पढ़ा कि ब्रह्म प्रकाश स्वरुप है | उनके मन में यह जिज्ञासा हुई कि क्या उस परम प्रकाश को देखा जा सकता है |
       जब वे पूज्य बाबा के पास पहुंचे तो उन्होंने वेदान्त की बात कही और ब्रह्म के बारे में जिज्ञासा की |
-    “ हाँ बच्चा ! वेदान्त की बात ठीक है | ब्रह्म प्रकाश स्वरुप है |”
-    “ क्या उस प्रकाश को देखा जा सकता है |”
-    “ हाँ , हाँ क्यों नहीं लेकिन तुम इस योग्य नहीं हुए हो कि पूर्ण ब्रह्म का प्रकाश देख सको | हाँ माया मिश्रित प्रकाश देखा जा सकता है | मैं तुम्हें अभी अनुभव कराता हूँ |”
पूज्य बाबा ने उन्हें एक यौगिक क्रिया बताई | उन्होंने उस साधना को उनके निर्देशानुसार किया | भीतर का अन्धकार फटने लगा | प्रकाश की किरणें छिटकने लगी | ज्योति तीव्र होती गयी | प्रकाश की तीव्रता सुरेन्द्र जी की सहन शक्ति से बाहर हो गयी | थोड़ी देर बाद हीं उन्हें वहां से लौटना पड़ा |
श्री बाबा आनन्द विभूति सम्पन्न हैं वे ब्रह्म स्वरुप हैं | भगवान की ज्योति देखना सद्गुरु की करुणा के बिना संभव नहीं है |
देवरहा बाबा के चरणों में प्रणाम _/\_
साभार – प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त 

बुधवार, 5 अगस्त 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 14

यहाँ भी छल !

बाबा मंच पर आसीन थे दर्शनार्थियों की भीड़ लगी हुई थी | स्त्री , पुरुष , धनी ,गरीब सभी थे | अनपढ़ और विद्वान् सभी | पैदल चल कर आने वाले और कार से चल कर आने वाले भी | बबूल बन की छाँव | बाबा एक एक कर या पांच सात को इकठ्ठे बुला कर बातचीत कर रहे थे , आशीष दे रहे थे | एक आदमी सहमा सहमा उपस्थित हुआ | बड़ा दयनीय चेहरा था | बहुत हीं दुखी लग रहा था | किसी को भी देख कर दया आ जाए ऐसा चेहरा बनाया था उसने | लेकिन बाबा की आँखें तो भीतर भेद कर देखती है , उपर का आवरण निरर्थक है | सामने वाला अभिनय में चाहे जितना भी दक्ष हो , बाबा के सामने पड़ते हीं कच्चा चिट्ठा खुल जाता है |
       उस मायूस चेहरे वाले के भीतर प्रवेश करते हीं न जाने क्यों  बाबा क्रोधित हो गये | जोर की कडकती आवाज़ बाहर तक आई | सभी सहम गये | क्षण भर को कीर्तन की लहर थम गयी |
-    “ तू महापापी है घोर नरक में जायेगा | उपर से छल करता है और दिन भर पाप में धंसता जाता है | जा , जा |”
वह व्यक्ति कुछ गिडगिडाया | कुछ आरजू करना चाहा |
-    “ समय नष्ट करना घोर पाप है |तू अपने साथ मेरा और खड़े  इन भक्तों का समय नष्ट क्यों करता है ? तू दिन रात पाप करता रहे और हम उसे  धोते रहे | मनुष्य अपने कर्मों का फल हीं पाता है नीच | यहाँ भी छल करता है !”
लेकिन बाबा ने उसके तरफ भी एक केला फेंक हीं दिया – “ ले प्रसाद और भाग
-    अपने को सुधार ! समय नष्ट मत कर ! ”  
फिर बाबा सहज हो गये | दूसरे जत्थे की पुकार हुई ! वह व्यक्ति पीछे हटते हटते गेट के बाहर आ गया | लोग उसे घूर रहे थे | वह और दयनीय लग रहा था | रामधुन की  मंद  हुई ध्वनी को लक्ष्य कर बाबा ने प्रेमपूर्वक कहा
-    “ नामकीर्तन जारी रखो बच्चा | ”
और फिर जय सियाराम , जय सियाराम की ध्वनि जोर जोर से उठने लगी |
देवरहा बाबा के चरणों में सादर प्रणाम _/\_
-    साभार ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त 

शनिवार, 1 अगस्त 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार - 13

बतासे में कीड़ें !
मार्च 1952 में कुम्भ के शुभ अवसर पर परम पूज्य बाबा हरिद्वार में हीं थे | 13 अप्रैल को कुम्भ का मुहूर्त था | उन्हीं दिनों श्री बाबा के दर्शानार्थ एक बड़ा हीं दीन बिद्यार्थी आया | वह धारा में प्रवेश कर मंच तक पहुंचा और जोर जोर से रोने लगा |
परम दयालु बाबा ने छात्र से रोने का कारण पूछा | छात्र ने जो कुछ भी बताया उसका तात्पर्य था कि वह किसी असाध्य रोग से ग्रस्त था | डाक्टरों के हिसाब से उसका बचना कठिन था | वह बाबा की शरण में आया था |
श्री बाबा ने उसके हाथ में कुछ बतासे गिराए और उन्हें खा जाने का आदेश दिया | परन्तु छात्र उन्हें खाने से झिझकने लगा | उसे बहुतेरे कीड़े कुलबुलाते नजर आने लगे  | उसने चाहा की उन छोटे छोटे कीड़ों को झाड कर निकाल दे और तब बतासे को खा कर आदेश का पालन करे | उसने बाबा से अपनी झिझक का कारण बतलाया | बाबा उसे लक्ष्य कर रहे थे |
बाबा ने छात्र से  कुछ क्षण मौन रह कर कहा –“ देखो तो अब कीड़े हैं या नहीं |”
बिद्यार्थी ने बतासे को गौर से  देखा | अब कीड़े नहीं थे | बतासे बिलकुल साफ़ थे |
-    “ अब तो कीड़े नहीं दिखते |” छात्र ने कहा
-    “ तो प्रसाद ग्रहण करने में कोई हानि नहीं है , क्यों बच्चा ?” बाबा ने कहा |
-    “ जी ! ”  कहकर छात्र ने बतासे को मुंह में डाल लिया |
-    “ देख बच्चा तेरी बिमारी अब बिलकुल भाग गयी | यदि कीड़े तुम्हें दुबारा दिखाई देते तो रोग का निवारण सचमुच नहीं होता |” बाबा ने कहा
बिद्यार्थी गदगद था | उसकी आँखों में कृतज्ञता के आंसू थे | उस छात्र के निकट खड़े भक्त विस्मित थे | उन्हें बतासों में पहले हीं  कोई दोष नजर नहीं आया था | फिर छात्र को उसमे कीड़े कैसे नजर आये ?
बाबा की लीला अपरम्पार है उनकी लीला वही जानें |
देवरहा बाबा के चरणों में सादर नमन _/\_

साभार - ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त