यहाँ भी छल !
बाबा मंच पर आसीन थे दर्शनार्थियों की भीड़ लगी
हुई थी | स्त्री , पुरुष , धनी ,गरीब सभी थे | अनपढ़ और विद्वान् सभी | पैदल चल कर
आने वाले और कार से चल कर आने वाले भी | बबूल बन की छाँव | बाबा एक एक कर या पांच
सात को इकठ्ठे बुला कर बातचीत कर रहे थे , आशीष दे रहे थे | एक आदमी सहमा सहमा
उपस्थित हुआ | बड़ा दयनीय चेहरा था | बहुत हीं दुखी लग रहा था | किसी को भी देख कर
दया आ जाए ऐसा चेहरा बनाया था उसने | लेकिन बाबा की आँखें तो भीतर भेद कर देखती है
, उपर का आवरण निरर्थक है | सामने वाला अभिनय में चाहे जितना भी दक्ष हो , बाबा के
सामने पड़ते हीं कच्चा चिट्ठा खुल जाता है |
उस
मायूस चेहरे वाले के भीतर प्रवेश करते हीं न जाने क्यों बाबा क्रोधित हो गये | जोर की कडकती आवाज़ बाहर
तक आई | सभी सहम गये | क्षण भर को कीर्तन की लहर थम गयी |
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“ तू महापापी है घोर नरक में जायेगा | उपर से छल
करता है और दिन भर पाप में धंसता जाता है | जा , जा |”
वह व्यक्ति कुछ गिडगिडाया | कुछ आरजू करना चाहा |
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“ समय नष्ट करना घोर पाप है |तू अपने साथ मेरा और
खड़े इन भक्तों का समय नष्ट क्यों करता है
? तू दिन रात पाप करता रहे और हम उसे धोते
रहे | मनुष्य अपने कर्मों का फल हीं पाता है नीच | यहाँ भी छल करता है !”
लेकिन बाबा ने उसके तरफ भी एक केला फेंक हीं दिया
– “ ले प्रसाद और भाग
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अपने को सुधार ! समय नष्ट मत कर ! ”
फिर बाबा सहज हो गये | दूसरे जत्थे की पुकार हुई !
वह व्यक्ति पीछे हटते हटते गेट के बाहर आ गया | लोग उसे घूर रहे थे | वह और दयनीय
लग रहा था | रामधुन की मंद हुई ध्वनी को लक्ष्य कर बाबा ने प्रेमपूर्वक कहा
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“ नामकीर्तन जारी रखो बच्चा | ”
और फिर जय सियाराम , जय सियाराम की ध्वनि जोर जोर
से उठने लगी |
देवरहा बाबा के चरणों में सादर प्रणाम _/\_
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साभार ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त
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