सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

तैलंग स्वामी – 2

हरिश्चन्द्र घाट स्थित श्मसान काशी का प्राचीन श्मसान है | चौक स्थित महाश्मसान के आस पास बस्तियां बस जाने के कारण मणिकर्णिका घाट पर प्राचीन श्मसान आ गया था | यही वजह था कि बाहर से आने वाले अधिकांस शव हरिश्चन्द्र घाट पर आने लगे |
       एक दिन ब्रह्मा सिंह को साथ ले कर तैलंग स्वामी श्मसान की ओर आये | कुछ देर बाद अनेक लोग एक शव को ले कर किनारे पर उतरने लगे | शवयात्रियों के पीछे एक महिला जोर जोर से रोती  हुई आ रही थी |ज्यों हीं शव को लोगों ने श्मसान भूमि पर रखा , त्यों हीं उक्त महिला उस शव  से लिपट गई | बहुत हीं मुश्किल से उक्त महिला को शव से अलग किया गया |
       स्वामी जी ने ब्रह्मा सिंह को शव यात्रियों के पास घटना की जानकारी के लिए भेजा तो पता लगा कि मृत व्यक्ति की पत्नी शव के साथ सती होना चाह रही है | नि:संतान ब्राह्मणी है | दूसरी जाती की होती तो पुनर्विवाह कर लेती |

       सारी बातें सुन लेने के बाद स्वामी जी उक्त महिला के पास आये | उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले “ –शांत हो जा बेटी |”
       स्नेह भरे इस स्वर को सुनते हीं महिला ने एक बार स्वामी जी की तरफ देखा और फिर उनके चरणों में सिर रखते हुए बोली – “मैं अब जीना नहीं चाहती | बाबा जी आप इन लोगों को समझाइये | अब मैं किसके लिए जियूं ?”
       स्वामी जी ने कहा –“ मेरा पैर तो छोड़ तुझे तो अभी जीवित रहना है | पति की सेवा करनी है |”
       पति की सेवा करनी है सुनते हीं उस स्त्री ने चीख कर पूछा “ क्या ?”
       उपस्थित लोग विस्मय से बाबा को देखने लगे | तभी तैलंग स्वामी ने शव के नाभि स्थल में पैर का अंगूठा लगा दिया | क्षण भर बाद लाश कुनमुनाने लगी | स्वामी जी ने कहा – “ इसके बंधन खोल दो |”
       लोग शव के बंधन खोलने लगे शेष लोग चकित दृष्टि से शव को जीवित होते देखने में लगे रहे | स्वामी जी चुपचाप अन्तर्धान हो गये | महिला , जीवित ब्राह्मण तथा साथ आये लोगों में से कोई भी अपनी कृतज्ञता प्रकट नहीं कर सका |
       संत चाहे तो मुर्दा भी जीवित हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं |

तैलंग स्वामी के चरणों में नमन _/\_
साभार : विश्वनाथ मुखर्जी के पुस्तक से प्राप्त |

देवरहा बाबा के चमत्कार 19

मेरा नाम ले कर
बात  1983 की है | अखौरी केदारनाथ छपरा में डाक विभाग के अधीक्षक थे | विजयदशमी के दिन वे खा पी कर रात में सो गये | उनका रसोइया अर्दली ( चपरासी ) के साथ शहर में उत्सव देखने चला गया | आधी रात के बाद वे दोनों लौट आए और घबराते हुए स्वर में दरवाजा खोलने के लिए आवाज़ देने लगे | केदारनाथ की नींद खुल गयी | दरवाजा खोल कर बाहर आये – “ कहो क्या बात है |”
-    “ तलवो के भीतर बहुत तेज दर्द है  , लगता है अभी प्राण निकल जायेंगे | जोर जोर से बेधता है |” अर्दली ने रोते हुए कहा | रोने की आवाज सुन कर केदारनाथ की पत्नी और छोटा भाई दोनों बाहर आ गये | गर्म तेल मलवाया गया किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ | दर्द की बेचैनी बढती गयी | दर्द के मारे आदमी चीखने लगा | केदारनाथ की पत्नी ने कहा – “ बाबा का ध्यान कीजिये |इस कुबेरा (असमय)में वे हीं कुछ कर सकते हैं |”
-    “ प्रसाद है ?”
-     “ जी हाँ है |”
-    “ थोडा प्रसाद इसे खिला दो मैं बाबा का ध्यान करता हूँ | उनकी कृपा हो तो इसकी मर्मान्तक पीड़ा दूर हो जायेगी |”

केदार नाथ ध्यान में लग गये | प्रसाद खा कर अर्सली को थोड़ी राहत मिली | एक घंटे के भीतर दर्द की लहर घट गयी | वेदना की तीव्रता कम हो गयी | उसकी रुलाई बंद हो गयी |
केदारनाथ के छोटे भाई ने अर्दली को रिक्सा से अस्पताल पहुंचाया | उतनी रात को कौन डॉक्टर डेरा पर देखने आता | अस्पताल में भी कोई निदान नहीं हो सका | सुबह जांच करने की बात तय  हुई |लेकिन सुबह जांच करने की नौबत हीं नहीं आई | अर्दली सुबह होते होते तक में बिलकुल ठीक हो गया और काम करने लगा | बाबा के प्रसाद ने हीं उसके कष्ट हर लिए थे |
       बाद में अखौरी केदारनाथ जब पूज्य बाबा के दर्शनों में गये तो बाबा ने स्वत: हीं उनसे कहा – “ भक्त तुम तो अब मेरा नाम ले कर बहुत से रोगियों को अच्छा कर देते हो |
.......मैं भी ऐसा हीं कुछ करता हूँ |”
देवरहा बाबा के चरणों में प्रणाम _/\_
साभार : ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त  

शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 18

तप का फल
( देवरहा बाबा का नाम “ देवरहा ” कैसे पड़ा इसकी कथा )
       काफी पहले की बात है | गोरखपुर जनपद का  मईल गाँव सरयू नदी के कटाव का शिकार हो गया था | वहां के किसान खेती की जमीन और घर को घाघरा ( सरयू ) की धारा में समाते हुए देख कर रो रहे थे | योगिराज ग्रामीणों की बिपति देख कर द्रवित हो गए | उन्होंने ग्राम वासियों को आश्वासन दिया – ‘अब सरजू जी कटाव बंद करेंगी | तट पर मेरी कुटिया डाल दो |’
       गाँव वालों ने बाबा की इच्छानुसार तट पर झोपडी डाल दी और बाबा वहीँ तपस्या में लग गये | तप के फलस्वरूप नदी का कटाव बंद हो गया | और धारा की दिशा बदल गयी | इससे प्रभावित हो कर लोग दर्शनों में आने लगे और दियर ( नदी के किनारे का बालू वाला क्षेत्र ) में रहने के कारण बाबा  ‘ दियरहा ’ बाबा कहलाने लगे जो अब कालान्तर में देवरहा बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं |

       सिद्ध योगी हीं नदी पर ऐसा अनुशासन कर सकते हैं | मुहम्मदाबाद ( गाजीपुर ) के निकट एक गाँव है हरिहरपुर | वहां भी पंजाबियों जैसे गठीले बदन वाले एक सिद्ध पुरुष थें | जिन्होंने गाँव वालों को नदी के कटाव से बचाया था | और बदले में सभी ग्राम वासियों को लंगोटी भर जमीन बाबा के कुटिया के लिए छोड़ना पड़ा था | उनकी समाधि ( लगभग  1920 ई ०  ) के बाद जब ग्रामीणों ने शर्त पालन बंद कर दिया तो फिर कटाव जारी हो गया जिसे काशी के किसी सिद्ध संत ने शर्त पालन करा कर नियमित करवाया था |
       देवरहा बाबा का सम्बन्ध नदियों से गहरा रहा है | उनकी जिन्दगी का अधिकाँश समय नदियों के गोद में हीं व्यतीत हुआ  था | | वे उन्हें माँ की तरह मानते थे अत : उनके कथन पर नदियाँ अपनी दिशा बदल लेती थी |
संतों के प्रेम भक्ति के आगे  उताल तरंगें भी  सिर झुका लेती हैं
देवरहा बाबा की जय _/\_

साभार : ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त