सोमवार, 22 जून 2015

अनंत

हिमालय  के सूदूर घाटी  क्षेत्र के घने वनों में एक साधू तपस्या रत था | घनघोर जंगल ऐसा कि सूर्य का प्रकाश भी छन छन कर धरती पर  नहीं आ पाए  | एक घने छायादार  मोटे वृक्ष के निचे चबूतरे पर वह साधक कुश के आसन पर आँखें बंद कर न जाने कीस  स्व : लोक में खोया हुआ था |  सुबह की मधुरिम  बेला , पक्षियों के कलरव सूर्य की बहुत हीं हल्की लालिमा सभी ओर छिटकी हुई थी | भाति भाति के पुष्पों की मंद मंद खुशबु वातावरण में स्वर्गका अहसास दिला रही थी | बगल में हीं पवित्र नदी गंगा कल कल करती अपनी उदमाकता में बहे चली जा रही थी | गंगा का निर्मल जल इतना स्वच्छ कि निचे के छोटे छोटे रंगीन पत्थर साफ़ साफ़ नजर आ रहें थे | पूरा वन स्वादिष्ट फलों के वृक्षों से भरा पड़ा था | वृक्षों से लिपटी लताएँ वृक्षों का अवलम्बन ले कर उन्मुक्त आकाश को छूने की लालसा लिए हुए सम्पूर्ण वृक्ष पर पसरी  हुईं थी  | पुष्पों के साथ हरे हरे वृक्षों की हरी हरी पतियाँ भी अपने सुगंध को विखेरे हुए थीं मानो वो भी पुष्पों से कह रहीं हों हम  भी तुम से कम नहीं |

       साधक अपनी साधना में लीन परम के मंजिल की ओर अपनी यात्रा जारी रखे हुए था | मैं भटक कर न जाने कैसे वहां पहुँच गया | मेरे नेत्र उस साधक के भाल कपाल पर ठहर गये | वहां सूर्य की भाँती चमक थी |  उस साधक की आँखें बंद थीं  और बाहर से प्रतित होता था कि दोनों आँखें भ्रू मध्य में कहीं ठहरी हुईं थीं | न जाने भीतर वह किस लोक विचरण कर रहा था | उस साधक की  नजदीकी प्राप्त करने पर मैं भी अपने भीतर अदभुत शान्ति और आनन्द की पुलक मह्शूश कर रहा था | मैं रात भर घने जंगल में भटका था इसलिए मैं वहीँ चबूतरे के निचे एक साफ़ स्थान पर एक चादर बिछा कर बैठ गया और उस योगी को निहारने लगा | थका हुआ तो था हीं न जाने कब आँखें लग गयीं | बड़ा हीं विचित्र स्वप्न देखा उस वक्त मैंने |  देखता हूँ हिमालय की बर्फ से आच्छादित पर्वत के निकट मैं  खड़ा हूँ | आकाश में आठ दस लम्बी जटाओं और दाढ़ी वाले योगी दिखाई दे रहें हैं जो मेरी हीं तरफ देख कर मुस्कुरा रहें हैं | मैं बर्फ से आच्छादित उस पर्वत की ओर बढ़ रहा हूँ | निकट पहुँचने पर एक गुफा दिखाई देता है , न जाने किस प्रेरणा से मैं उस गुफा के अंदर प्रवेश कर जाता हूँ | कुछ  देर गुफा के सुरंगमयी रास्ते को पार करने के बाद अदभुत ! अदभुत !
       एह तो पूरा एक दिव्य लोक हीं हैं | जैसे विशाल महल के अंदर वाला भाग | छतों पर अदभुत नक्कासी | मोटे मोटे स्तम्भ मेहराब | दीवालों पर सुंदर कलाकृतियाँ | ये सभी  तो स्वर्ण के रंग के थे कहीं इनका निर्माण स्वर्ण से तो नहीं किया गया ये सोच कर उन दीवारों को छू लेने की उत्कंठा मेरे मन में हुई और मैंने छू हीं लिया | वे दीवारें ठोस थीं और स्वर्ण सी प्रतित हुईं शायद स्वर्ण हीं था ! अदभुत !
       और अंदर प्रवेश करने पर थोड़ी चहल पहल मह्शूश हुई | देखा एक दिव्य संत सफ़ेद धवल केश दाढ़ी तथा सफ़ेद वस्त्र पहने हुए एक अदभुत उचें आसन से दो तीन  फूट उपर शून्य में हीं पद्मासन लगाये बैठे थे  | उनको घेरे हुए अनेकों अनेकों अनेक साधु और साध्वियां आसन बिछा कर निचे बैठे हुए थे | वे महापुरुष कुछ बोल कर उन साधकों को कुछ समझा रहें थे | सहसा हीं उन श्वेत्वस्त्रधारी महात्मा की नजर मेरे उपर पड़ी |

       क्रमश : जारी .............. 

सोमवार, 8 जून 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार - 6

राखो लाज हमारी !
श्री बनारस सिंह पूज्य बाबा के निष्ठावान शिष्यों में से एक हैं एक सत्र न्यायधीश उनके साथ बाबा के  दर्शनों में चले रास्ते में उन्होंने कहा -' बनारस बाबू।  आप तो पुराने शिष्य हैं क्या जाते जाते दर्शन हो जाएगा ? '
- " भावना बड़ी चीज है स्नेह और श्रधा की उत्कटता से हीं मिलन होता है देखिए "
मन हीं  मन उन्होंने प्रार्थना की " राखो लाज हमारी   "  बहुत भीड़ थी मालूम कहाँ कहाँ से लोग अपनी कामनाओं की पूर्ति तथा   दर्शनों के पुण्यलाभ के  लिए आये हुए थे पहले से हीं भक्तों की जमात जुटी हुई थी बड़े पदाधिकारी थे , हाईकोर्ट के जज भी  थे क्या बाबा पहले बुलाएंगे ? मन ने पुकारा ' राखो लाज हमारी   '
सभी खड़े थे बाबा कुटीर से निकले खुले मंच पर आते हीं जय  ध्वनि हुई - " देवरहा बाबा की जय "   बाबा ने सब पर दृष्टि दौड़ाई कुछ क्षणों में आदेश हुआ -" भक्त बनारस ! अपने साथियों के साथ आगे जाओ !"
प्रभु  श्री ने भक्त की  लाज रख ली जाते हीं बुला लिया
इसीलिए तो सभी अंतर्यामी कहते हैं उन्हें

आज  भी बाबा को सच्चे दिल से पुकारो तो बाबा सहायक होते हैं

रविवार, 7 जून 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार - 4

मेटे मन का संशय  भारी  !
 एक जज थे श्री एम . पी  . सिन्हा | बाबा के परम भक्त बराबर बाबा के दर्शन को जाते थे |  उनका घर भर भक्त है बाबा का | लेकिन उनकी छोटी पुत्री को इन सब बातों में कोई आस्था नहीं थी | वह इन सब बातों को बेकार तथा ढकोसला मानती थी | अगली बार जब जज साहब ने दर्शन का मन बनाया तब छोटी पुत्री को भी यह कह कर कि “ चलो कम से कम घूमना हो जाएगा ” साथ ले लिया |
वह भी तैयार हो गयी यह सोच कर की बार बार माता पिता की बात को टालना ठीक नहीं , उसने यह सोचा की कम से कम आस्था नहीं है तो बाबा को देख तो लेगी | यही सोच कर वह तैयार हो गयी | मन में उसने सोचा ‘ बाबा अगर सचमुच में सिद्ध हैं तो मुझे नारियल का प्रसाद देंगे |’ उसने अपने लिए नारियल का प्रसाद सोचा बाबा अगर अन्तर्यामी हैं तो दें |

वहां  पहुँचने पर बाबा के दर्शन हुएं बाबा ने सबका कुशल क्षेम पूछा तथा सबको आशीर्वाद दिया | और प्रसाद दे कर सबकी छुट्टी की | उस लड़की को भी वही प्रसाद मिला जो अन्य को | वह बोली कुछ भी नहीं | उसने अपने मन की बात पहले भी किसी को नहीं बताई थी | सभी बाबा को दंडवत करने लगे | वह भी मुड़ी |
तभी बाबा की गम्भीर आवाज़ सुनाई पड़ी – “ बच्ची ” |
वह सामने मुंह कर खड़ी हो गयी –“  तुम तो सोच कर आई थी नारियल का प्रसाद पाने के लिए और चुप चाप केला ले कर जा रही हो | ‘ लो अपना प्रसाद लेती जाओ ’ उनके चेहरे पर रहस्यमयी  मुस्कुराहट उभर आयी | बाबा ने टोकरी में हाथ डाला और ताज़ा नारियल निकाल कर उसे प्रसाद  दिया | वह आवक रह गयी | बाबा ने आखिर उसके मन की भी बात को जान लिया | वे अन्तर्यामी है | अंततः उसके मन में भी बाबा के प्रति श्रधा जाग गयी |
पूज्य बाबा सहज करूणावश जीव मात्र पर दया कर अपने कौतुक मात्र से प्रेरणा देते रहते थे | वे कहते थे दुनिया में कोई नास्तिक नहीं है | नास्तिक होता तो विद्वान् होता और उसकी बात समझ में आती | जो है संशयआत्मा है |
बाबा सबमे संशय के भाव को मिटा देते हैं ताकि वह प्रभु चरणों में शुद्ध प्रेम के भाव से पूजा के फूल चढ़ा सके , प्रभु के अनंत विभूतियों के आनन्द में मग्न हो सके |
तो बोलिए और टिप्पणी में लिखिए देवराहा बाबा की जय |

-    साभार ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त 

देवरहा बाबा के चमत्कार - 5

पांच  कंकड़ों से अग्नि शांत हो गयी !
19 63 माघ मेले की बात है श्री  बाबा का मंच यथा स्थान झूसी की  ओर था
श्री शिवदानी सिंह ( बाबा के मंच के करीब व्यवस्था देखने वाले संतरी ) मंच के निकट थे
अचानक मेले में एक ओर आग लग गयी शिवदानी सिंह ने हाथ जोड़ कर बाबा से प्रार्थना की - ' महराज प्रलय होने जा रहा है
यदि अग्नि शांत नहीं हुई तो सारा मेला स्वाहा हो जाएगा '
आग देख कर बाबा ने पांच कंकड़ जल्दी मंगवाया और आदेश दिया कि  संकेत मिलने पर एक एक कर फेंका जाए
श्री बाबा मंत्र पढ़ कर संकेत करते गए और शिवदानी सिंह प्रत्येक संकेत पर कंकड़ फेकते गए
अग्नि जहाँ थी वहीँ की वहीँ शांत हो गयी

सिद्ध संतों का पांचो तत्वों पर वश होता है तो बोलिए और लिखिए देवरहा बाबा की जय !
-    साभार ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त

मंगलवार, 2 जून 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 3

कौन हवा चले !
पूज्य बाबा प्रयाग में गंगा तट  पर मंचासीन थे | मंच के निचे श्री शिवदानी सिंह संतरी का काम कर रहे थे | पछेया ( पश्चिम के तरफ से बहने वाली हवा ) चल रही थी | हवा के झोंके  के साथ बड़ी तेज़ दुर्गन्ध आ रही थी | दर्शनार्थियों का आना प्रारम्भ नहीं हुआ था | बाबा मंच पर बनी कुटिया के अंदर थे | उसी समय एक दर्शनार्थी आ धमके | शिवदानी सिंह ने उनसे आग्रह किया –‘ महराज जी के बाहर निकलने का समय अभी नहीं हुआ है दर्शन को दो घंटे बाद  आइये |’

-    ‘ मैं तो  भैया दर्शन कर के हीं जाऊँगा |’ आगन्तुक ने जाने से इंकार कर दिया | शिवदानी सिंह झुझलाने  वाले हीं थे कि बाबा का स्नेहिल स्वर सुनाई दिया – ‘ बच्चा भक्त को बोलो कि मैं दर्शन देता हूँ | ’
‘ अभी आपके बाहर निकलने लायक वातावरण नहीं है | बड़ी तेज़ दुर्गन्ध आती है | ’ शिवदानी सिंह ने श्री बाबा से प्रार्थना की |
लेकिन बाबा झोपडी से निकल आए और भक्त को दर्शन तथा प्रशाद  दे कर छुट्टी की | इसके तुरंत बाद वे पुन : अपनी कुटिया में चले गये | उन्होंने भीतर से हीं पूछा – “ बच्चा दुर्गन्ध किस चीज की है | ”
-    “ मुर्दों की है महराज ! ” शिवदानी सिंह ने कहा |
-    “ कौन सी हवा चले कि दुर्गन्ध इधर नहीं आवे ? ” बाबा ने पूछा |
-    “पछेया हवा चल रही है | यदि पुरवैया ( पूरब की ओर से आने वाली हवा ) चले तो दुर्गन्ध विपरीत दिशा में चली जायेगी |”
-    “ ठीक है बच्चा ” बाबा ने कहा |
अब दो मिनट के अंदर हीं पछेया का चलना रुक गया और पुरवैया लहराने लगी | सर्वसमर्थ योगिराज देवराहा बाबा अपने भक्तों की आँखें खोलने के लिए कोई न कोई खेल किया करते थे |

तो बोलिए और टिप्पणी में लिखिए देवराहा बाबा की जय !

-     साभार ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से यह लेख प्राप्त हुआ |   

देवरहा बाबा के चमत्कार 2

पतों का कमाल !
बात बहुत पहले की है | श्री इंद्र सहाय की पत्नी कमला देवी अस्पताल इलाहबाद मर भर्ती थी | वे काफी रुग्ण  थी उनका ओपरेसन करना पड़ा था | ओपरेसन के बाद  इतना रक्त स्त्राव  हुआ था की उनका ज़िंदा बचना मुश्किल था | रात्री का समय था डॉक्टर उम्मीद छोड़ चुके थे |
इंद्र जी के चपरासी ने बताया कि एक महात्मा त्रिवेणी मचान पर है और उनके सिद्ध होने की प्रसिद्धि है | रात में बाबा तक जाने की हिम्मत श्री इंद्र जी को नहीं हुई | उन्होंने चपरासी को हीं बाबा तक भेजा | चपरासी रात्री में हीं  बदहवास बाबा के मचान तक पहुंचा | उसका निवेदन सुन कर बाबा ने उसे एक पता (leaf)  दिया और बोलें - “ बच्चा इसे ले जा सवेरे के पहले यदि इसे उनके मुंह में डाल दे तो वे अच्छी हो जायेंगी ...........”

वह चपरासी लगभग दो बजे रात्री को त्रिवेणी से चला और चार बजे के करीब अस्पताल पहुंचा | रोगी की हालत बिगडती जा रही थी | चपरासी के पहुँचते हीं पता सहाय जी के पत्नी को खिलाया गया | पता खाने के तुरंत बाद  हीं रक्त का बहना बिलकुल बंद हो गया और वे सो गयीं |
उनकी नींद सवेरे आठ बजे खुली | उनका चेहरा प्रसन्न चित एंव खिला हुआ था | ऐसा प्रतित हो रहा था कि वे बिलकुल स्वस्थ हो चुकी थीं | जो उनके बचने की उम्मीद खो चुके थे वे आश्चर्यचकित थे | बारह  बजे दिन में वे जिद्द कर के बाबा के दर्शन के लिए त्रिवेणी गयीं | वहां बाबा ने उन्हें बहुत आशीर्वाद दिया |
“ बच्चा अब तुम्हे अस्पताल जाने की आवश्यकता नहीं है | तुम निरोग हो तुम्हें कोई कष्ट नहीं है | तुम सीधे घर चली जाओ ” बाबा ने कहा
इंद्र सहाय और उनकी पत्नी सीधे घर गयीं | ये उनकी बाबा से पहली मुलाक़ात थी |
बोलिए तथा टिप्पणी में लिखिए “ देवरहा बाबा की जय ”
बाबा को सच्चे मन से याद करने पर आज भी बाबा भक्तों की पुकार सुनते हैं इसमें कोई शक नहीं है |
 साभार ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से यह लेख प्राप्त हुआ |