राखो लाज हमारी !
श्री
बनारस सिंह पूज्य
बाबा के निष्ठावान
शिष्यों में से
एक हैं ।
एक सत्र न्यायधीश
उनके साथ बाबा
के दर्शनों
में चले ।
रास्ते में उन्होंने
कहा -' बनारस बाबू। आप तो
पुराने शिष्य हैं क्या
जाते जाते दर्शन
हो जाएगा ? '
- " भावना बड़ी
चीज है ।
स्नेह और श्रधा
की उत्कटता से
हीं मिलन होता
है । देखिए
। "
मन
हीं मन
उन्होंने प्रार्थना की " राखो
लाज हमारी । "
बहुत भीड़ थी
। न मालूम
कहाँ कहाँ से
लोग अपनी कामनाओं
की पूर्ति तथा दर्शनों
के पुण्यलाभ के लिए
आये हुए थे
। पहले से
हीं भक्तों की
जमात जुटी हुई
थी । बड़े
पदाधिकारी थे , हाईकोर्ट
के जज भी थे
। क्या बाबा
पहले बुलाएंगे ? मन
ने पुकारा ' राखो
लाज हमारी । '
सभी
खड़े थे ।
बाबा कुटीर से
निकले । खुले
मंच पर आते
हीं जय ध्वनि हुई - " देवरहा
बाबा की जय
" बाबा
ने सब पर
दृष्टि दौड़ाई । कुछ
क्षणों में आदेश
हुआ -" भक्त बनारस
! अपने साथियों के साथ
आगे आ जाओ
!"
प्रभु श्री
ने भक्त की लाज
रख ली ।
जाते हीं बुला
लिया ।
इसीलिए
तो सभी अंतर्यामी
कहते हैं उन्हें
।
आज भी
बाबा को सच्चे
दिल से पुकारो
तो बाबा सहायक
होते हैं ।
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