मेटे मन का संशय भारी !
एक
जज थे श्री एम . पी . सिन्हा | बाबा के
परम भक्त बराबर बाबा के दर्शन को जाते थे |
उनका घर भर भक्त है बाबा का | लेकिन उनकी छोटी पुत्री को इन सब बातों में
कोई आस्था नहीं थी | वह इन सब बातों को बेकार तथा ढकोसला मानती थी | अगली बार जब
जज साहब ने दर्शन का मन बनाया तब छोटी पुत्री को भी यह कह कर कि “ चलो कम से कम
घूमना हो जाएगा ” साथ ले लिया |
वह भी तैयार हो गयी यह सोच कर की बार बार
माता पिता की बात को टालना ठीक नहीं , उसने यह सोचा की कम से कम आस्था नहीं है तो
बाबा को देख तो लेगी | यही सोच कर वह तैयार हो गयी | मन में उसने सोचा ‘ बाबा अगर
सचमुच में सिद्ध हैं तो मुझे नारियल का प्रसाद देंगे |’ उसने अपने लिए नारियल का
प्रसाद सोचा बाबा अगर अन्तर्यामी हैं तो दें |
वहां पहुँचने पर बाबा के दर्शन हुएं बाबा ने सबका
कुशल क्षेम पूछा तथा सबको आशीर्वाद दिया | और प्रसाद दे कर सबकी छुट्टी की | उस
लड़की को भी वही प्रसाद मिला जो अन्य को | वह बोली कुछ भी नहीं | उसने अपने मन की
बात पहले भी किसी को नहीं बताई थी | सभी बाबा को दंडवत करने लगे | वह भी मुड़ी |
तभी बाबा की गम्भीर आवाज़ सुनाई पड़ी – “
बच्ची ” |
वह सामने मुंह कर खड़ी हो गयी –“ तुम तो सोच कर आई थी नारियल का प्रसाद पाने के
लिए और चुप चाप केला ले कर जा रही हो | ‘ लो अपना प्रसाद लेती जाओ ’ उनके चेहरे पर
रहस्यमयी मुस्कुराहट उभर आयी | बाबा ने टोकरी में हाथ डाला और ताज़ा
नारियल निकाल कर उसे प्रसाद दिया | वह आवक
रह गयी | बाबा ने आखिर उसके मन की भी बात को जान लिया | वे अन्तर्यामी है | अंततः
उसके मन में भी बाबा के प्रति श्रधा जाग गयी |
पूज्य बाबा सहज करूणावश जीव मात्र पर दया
कर अपने कौतुक मात्र से प्रेरणा देते रहते थे | वे कहते थे दुनिया में कोई नास्तिक
नहीं है | नास्तिक होता तो विद्वान् होता और उसकी बात समझ में आती | जो है संशयआत्मा
है |
बाबा सबमे संशय के भाव को मिटा देते हैं
ताकि वह प्रभु चरणों में शुद्ध प्रेम के भाव से पूजा के फूल चढ़ा सके , प्रभु के
अनंत विभूतियों के आनन्द में मग्न हो सके |
तो बोलिए और टिप्पणी में लिखिए देवराहा
बाबा की जय |
- साभार ब्रजकिशोर जी
के पुस्तक से प्राप्त
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