आराम से सुखासन में
बैठ जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी हो तनी हुई नहीं |
निचे बैठने के लिए
कोई आसन बिछा लें सूती ऊनी या कुश का कुछ
भी |
आँखें बंद कर लें |
दो चार लम्बी गहरी
सांस लें और छोड़ दें | आहिस्ता आहिस्ता
बिलकुल आराम से |
ध्यान को आज्ञा चक्र
( दोनों भौं के बीच में ) पर लायें | तीन
से पांच मिनट तक ध्यान को आज्ञा चक्र पर टिकाये रखें |
पांच मिनट बाद
ध्यान को सर के चोटी
पर ले जाएँ | ध्यान को सर के चोटी पर रखें |
ध्यान को सर के चोटी
पर रखते हुए हीं ,
बार बार परमात्मा को
धन्यवाद दें बिना किसी कारण के हीं |
आपका धन्यवाद शून्य
में हो अकारण हीं मन में भाव करें
हे प्रभु तेरा
धन्यवाद , हे प्रभु धन्यवाद |
पांच से सात मिनट तक
सिर्फ यही भाव मन में गूंजने दें “ हे
भगवान , हे परमपिता , हे इश्वर तेरा धन्यवाद |
सात मिनट बाद
ध्यान को सर के चोटी
पर टिकाये हुए हीं भाव करें
मेरा शरीर किसी पर
आश्रित नहीं है
बार बार यह भाव करें
“ मेरा शरीर किसी पर आश्रित नहीं है
कल्पना में अपने
शरीर को अन्तरिक्ष में तैरते हुए देखें
आपका शरीर शून्य (
परम तत्व ) में तैर रहा है ऐसा तस्वीर मन में देखें |
बार बार भाव करें
मेरा शरीर किसी पर आश्रित नहीं है
लगातर सात से दस
मिनट इस विचार का निरंतर बारिश कर दें अपने मन में की “मेरा शरीर किसी
पर आश्रित नहीं है |”
लगातर इस विचार के
बारिश से फौरन अपने आप को परमात्म तत्व से अपने को जुड़ा हुआ मह्शूश करेंगे आप |
दस मिनट बाद
अपने मन में दृढता
से यह दोहरायें
“ मेरा मन मेरा चित
किसी पर आश्रित नहीं है “
बार बार यह दुहरायें
“ मेरा मन मेरा चित किसी पर आश्रित नहीं है “ इस भाव की भी बारिश कर दे लगातर मन
में
पांच से सात मिनट तक यह भाव दुहराते रहें |
सात मिनट बाद
ध्यान को आज्ञा चक्र
पर लायें | दो से तीन मिनट तक ध्यान को आज्ञा चक्र पर रखें
मन हीं मन फिर से भगवान को धन्यवाद दें
अब आप ध्यान से बाहर
आ सकते हैं |
इस ध्यान को करने से
आपका आत्मविश्वाश चरम पर पहुंचेगा | अंतर्मन में भगवान से एक जुड़ाव हमेशा मह्शूश
करेंगे | लगातर नियत समय पर यह ध्यान करने से प्रारम्भ में कभी कभी अचानक से मन
में शुन्यता का भाव झलक जाएगा |
तीन महीना के निरंतर अभ्यास से मन में शून्यता का भाव दृढ होने लगेगा गारेंटेड