तैलंग स्वामी अक्सर शाम के समय अपने आश्रम
( बनारस ) से चल कर काल भैरव ( बनारस ) दर्शन को आते थे | वापस लौटते वक्त एक दूध
वाले के अनुरोध पर उसके यहाँ दूध पीते थे | कहा जाता है कभी कभी कडाही उठा कर बीस
सेर दूध पी जाते थे | बाबा के जाने के बाद शेष दूध को ग्राहक प्रसाद के रूप में खरीद लेते थे | इस प्रकार उस
ग्वाले का सारा दूध बिक जाता था | जब कभी
वे इधर नहीं आते थे तो उसकी बिक्री देर रात गये तक होती रहती थी |
तैलंग स्वामी का क्रिया कलाप अदभुत था | कभी कडाके की सर्दी
में ठंढे पानी से नहाते थे और कभी प्रचंड गर्मी में तपते रेत पर लेटे रहते थे | मंगलदास
भट्ट के घर में एक बड़ा गड्ढा था , जिसमे वे बैठ जाते थे और लोग उन पर
ठंढा जल झारी से गिराते थे जिस प्रकार शिवलिंग पर झारी से गिराया जाता है | कभी
गंगा में स्नान करने गये तो कई घंटे डुबकी लगाये रहते या शवासन करते हुए दिन भर
तैरते रहते थे | उनके सोने का तरीका भी विचित्र था | एक कम्बल बिछाते थे और एक
दूसरा कम्बल ओढ़ लेते थे |
तैलंग
स्वामी की और भी कथाएँ लेकर पुन : हाज़िर होऊंगा ॐ
साभार : विश्वनाथ मुखर्जी के पुस्तक से
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