श्री
महाबीर प्रसाद मुजफ्फरपुर के
मुंसिफ थे | अक्टूबर १९५७ में ये पहली बार
बाबा के दर्शनों के लिए लार रोड स्थित सरयू तट वाले आश्रम पर
पहुंचे | उनके साथ उनके सारे
परिवार के लोग थे | दर्शनोप्रांत लौटते समय उनके साले
के पुत्र को रास्ते में सांप ने डंस लिया | उसकी उम्र सत्रह वर्ष की थी
|सांप जहरीला था , कुछ हीं क्षणों में
जहर असर करने लगा | वह तुरंत बेहोश हो गया | उसे
उठा कर सभी बाबा के मंच के पास पुन : आ गये |
बाबा ने उसे
जमीं पर लेटा देने को कहा | स्वयं
मंच पर हीं
खड़े रहे | श्री बाबा
ने उपर से हीं
अपनी दृष्टि लड़के के तरफ करके
कहा – “ क्यों काटा है इसे , बोल
क्या कारण है ?”
अचेत
बालक लेटे लेटे हीं बोला – “ मेरे शरीर पर
इसने पैर रखा था
| ”
---- यह
अनुचित है | जानबूझ कर बालक
ने कोई अपराध तो
नहीं किया | रास्ते में तू
सोया क्यों था ?” बाबा
ने ताड़ना देते हुए आदेश
दिया –“ मैं कहता हूँ तू इसका
विष खिंच ले |”
-
क्षमा
कीजिये सरकार मैं विष
खिंच रहा हूँ | ”
बालक
उठ कर बैठ गया | थोड़ी देर
में वह पूर्णत : स्वस्थ हो कर सबके
साथ घर को लौट गया |
साभार – प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक “ योगिराज श्री
देवरहा बाबा के
चमत्कार ” पुस्तक से प्राप्त
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