प्रारब्ध
काशी
में भवानी प्रसाद ‘ वाचस्पति ’ एक सज्जन थे जो एक अरसे से काला ज्वर का कष्ट भुगत
रहे थे | शारीरिक तथा मानसिक कष्ट से पीड़ित थे | मित्रों के सुझाव पर तैलंग स्वामी
के पास आये और कष्ट से मुक्ति पाने की प्रार्थना करने लगे |
सारी
बातें सुनने के बाद बाबा ने कहा – “ चलो जरा भांग पीसो |”
वाचस्पति
महाराज सील लोढ़ा ले कर भांग पीसने लगे | पीस जाने के बाद बाबा ने मटर के बराबर
भांग की गोली देते हुए कहा – “ इसे खा जाओ | कल से रोज इसी समय आना | यहाँ तुम्हे
भांग पीसना तथा खाना पड़ेगा |”
वाचस्पति
बाबा के इस आज्ञा को सुन कर स्तम्भित रह गये | उन्हें यह तो मालूम था कि बाबा लोग
भांग गांजे का सेवन करते हैं , किन्तु यह क्या जो नहीं खाते उन्हें भी खिलाते है !
अब वे नित्य आते , भांग पीसते , मटर के बराबर गोली खा कर घर चले जाते थे | यह क्रम
लगातार एक माह तक चलता रहा | एक दिन जब वाचस्पति आये तब बाबा ने कैं कर दी | इसके
बाद वाचस्पति से कहा गया कि वे इस जगह को
साफ़ कर दें |
आदेश
के अनुसार बिना हिचक के सर्वत्र उन्होंने स्थान को साफ़ कर दिया | बाद में भांग
पीसने का कार्यक्रम चालू हुआ |
इसी
प्रकार बाबा ने एक दिन काफी मात्रा में टट्टी कर दी | वाचस्पति को आने पर सफाई
करने को कहा गया | इस बार भी उन्होंने बिना हिचके सफाई कर दी | इसके बाद भांग पीसी
और खाई गयी |
इस
घटना के दुसरे दिन बाबा ने भांग की गोली खिलाने के बाद कहा – “ अब कल से तुम यहाँ
मत आना |”
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“ क्यों बाबा |”
बाबा ने कहा – “ चार दिन बाद तुम पूर्ण स्वस्थ हो जाओगे | इसी कष्ट के
लिए तो तुम यहाँ आते रहे |”
चार दिन बाद वाचस्पति पूर्ण स्वस्थ हो गये |
कभी कभी हमे प्रारब्ध ( पूर्व जन्म ) के कष्ट
भुगतने पड़ते हैं , किन्तु किसी सिद्ध की कृपा से उसे भी समाप्त किया जा सकता है |
साभार
– विश्वनाथ मुखर्जी के पुस्तक से प्राप्त
नोट : भांग खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है |