आप कहतें हैं हैं
ध्यान करना चाहता हूँ किन्तु ध्यान नहीं लगता | अब इस पर मनन करें ये कौन चाह रहा
है की ध्यान करूँ और ये किसके कारण ध्यान नहीं लगता | ये ध्यान चाहने वाला आपका
आत्मा है और मन के द्वारा व्यक्त हो रहा है मन के द्वारा व्यक्त होना इसकी मजबूरी
है क्यूंकि वर्तमान में आत्मा के पास अभियक्ति का साधन नहीं है मन के सिवा | जब
व्यक्ति आत्मज्ञानी हो जाता है ब्रह्मज्ञानी हो जाता है तो आत्मा अपने आप को
रोंवें रोंवें से अभिव्यक्त करने लगती है | किसी ब्रह्मज्ञानी के समीप बैठ कर
देखें | आप कहते हैं ध्यान नहीं लगता ध्यान कौन नहीं लगने दे रहा है ये आपका मन
हीं ध्यान नहीं लगने दे रहा दूसरा कोई बाधक नहीं है |
जब मन ध्यान में रोड़े अटकाए
तब मन को अनुशासन से संयमित करें ( अथ योगानुशासनम ) | अनुशासन योग का | और योग
क्या योगशचितवृतिनिरोध: मन के वृतियों यानि मन के स्वाभाव को रोकना योग
है | तो मन के स्वाभाव को कैसे रोकें दृढ संकल्प से | संकल्प करें ध्यान करने का
चाहे मन बार बार भटके किन्तु प्राण प्राण से संकल्प करें की आज ध्यान लगा कर हीं
दम लूँगा मन को इधर उधर नहीं भटकने दूंगा बल्कि मन को जोर जबरदस्ती से हीं सही
ध्यान कि ओर प्रेरित करूँगा | बार बार प्रयास से मन ध्यान कि ओर प्रेरित होने
लगेगा निश्चित हीं |
आपका मन ध्यान के
लिए प्रेरित हो ऐसा परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ |
ॐ