गुरुवार, 27 सितंबर 2018

परावलंबन निषेध ध्यान |


आराम से सुखासन में बैठ जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी हो तनी हुई नहीं |
निचे बैठने के लिए कोई आसन बिछा लें सूती ऊनी  या कुश का कुछ भी  |
आँखें बंद कर लें |
दो चार लम्बी गहरी सांस  लें और छोड़ दें | आहिस्ता आहिस्ता बिलकुल आराम से |
ध्यान को आज्ञा चक्र ( दोनों भौं के बीच में ) पर लायें | तीन  से पांच मिनट तक ध्यान को आज्ञा चक्र पर टिकाये रखें |
पांच मिनट बाद
ध्यान को सर के चोटी पर ले जाएँ | ध्यान को सर के चोटी पर रखें |

ध्यान को सर के चोटी  पर रखते हुए हीं ,
बार बार परमात्मा को धन्यवाद दें बिना किसी कारण के हीं |
आपका धन्यवाद शून्य में हो अकारण हीं मन में भाव करें
हे प्रभु तेरा धन्यवाद , हे प्रभु धन्यवाद |
पांच से सात मिनट तक सिर्फ यही भाव मन में  गूंजने दें “ हे भगवान , हे परमपिता , हे इश्वर तेरा धन्यवाद |
सात मिनट बाद
ध्यान को सर के चोटी पर टिकाये हुए हीं भाव करें
मेरा शरीर किसी पर आश्रित नहीं है
बार बार यह भाव करें “ मेरा शरीर किसी पर आश्रित नहीं है
कल्पना में अपने शरीर को अन्तरिक्ष में तैरते हुए देखें
आपका शरीर शून्य ( परम तत्व ) में तैर रहा है ऐसा तस्वीर मन में देखें |
बार बार भाव करें मेरा शरीर किसी पर आश्रित नहीं है
लगातर सात से दस मिनट इस विचार का  निरंतर  बारिश कर दें अपने मन में की “मेरा शरीर किसी पर आश्रित नहीं है |”
लगातर इस विचार के बारिश से फौरन अपने आप को परमात्म तत्व से अपने को जुड़ा हुआ मह्शूश करेंगे आप |
दस मिनट बाद
अपने मन में दृढता से यह दोहरायें
“ मेरा मन मेरा चित किसी पर आश्रित नहीं है “
बार बार यह दुहरायें “ मेरा मन मेरा चित किसी पर आश्रित नहीं है “ इस भाव की भी बारिश कर दे लगातर मन में
 पांच से सात मिनट तक यह भाव दुहराते रहें |
सात मिनट बाद
ध्यान को आज्ञा चक्र पर लायें | दो से तीन मिनट तक ध्यान को आज्ञा चक्र पर रखें
मन हीं मन  फिर से भगवान को धन्यवाद दें
अब आप ध्यान से बाहर आ सकते हैं |
इस ध्यान को करने से आपका आत्मविश्वाश चरम पर पहुंचेगा | अंतर्मन में भगवान से एक जुड़ाव हमेशा मह्शूश करेंगे | लगातर नियत समय पर यह ध्यान करने से प्रारम्भ में कभी कभी अचानक से मन में शुन्यता का भाव झलक जाएगा |
तीन महीना  के निरंतर अभ्यास से मन में शून्यता  का भाव दृढ होने लगेगा गारेंटेड



चैतन्य भाव ध्यान


हम नित्य शुद्ध , बुद्ध चेतना हैं इस भाव को जगाने पर उस परमात्मा की झलक मिलने लगती है | चेतना जो सर्वव्यापी है सर्वत्र है नित्य है हर क्षण है | इन्द्रियों में लीन होने के कारण हमे इसका भान नहीं होता | हर वक्त बाहर की और मन घूमता रहता है भागता रहता है बाहर हीं बाहर कुछ खोजता रहता है जबकि जिसे वह मन खोज रहा है वह भीतर है | है तो वह बाहर भी किन्तु उसे पाना हो अगर तो अपने भीतर स्वयं से शुरुआत करना पड़ेगा | ठीक वैसे हीं जैसे अगर एक विशाल वृक्ष पर हमें चढना हो तब हमे उसके जड़ या तने के तरफ से चढना होगा न की पत्तों शाखाओं को पकड कर | जड़ हम हीं है स्वयं इसलिए शुरुआत स्वयं से जो चीज अपने भीतर हीं मौजूद है तो बाहर से शुरुआत करना कहाँ की बुद्धिमता है और इससे हासिल भी कुछ नहीं होता मन सिर्फ भटक भटक कर दुखी हो जाता है स्वयं को हीं पीड़ा देने लगता है |

तो आइये ध्यान में उतरें
आराम से सुखासन में बैठ जाएँ | निचे कोई आसन आदि बिछा लें |
रीढ़ की हड्डी सीधी तनी हुई नहीं
आँखें बंद हों | दो चार लम्बी गहरी साँसें ले कर छोड़ दें ! बिलकुल आहिस्ता आहिस्ता |
ध्यान को आज्ञा चक्र ( दोनों भौं के बीच में ) पर टिका दें |
तीन से पांच मिनट बाद
ध्यान को आज्ञा चक्र पर टिकाये हुए हीं
अपने सम्पूर्ण शरीर को अपनी कल्पना में देखें |
तीन से पांच मिनट तक भाव करते हुए  अपने सम्पूर्ण शरीर को कल्पना में उतार लें |
अब पांच मिनट बाद
कल्पना करें मेरा शरीर सिर्फ हाड मांस हीं नहीं है |
मेरा सम्पूर्ण शरीर शुद्ध चेतना से निर्मित है |
अपने शरीर के भीतर स्थित चेतना को अनुभव करने की कोशिश करें |
नित्य इसी भाव में रहें मेरा शरीर शुद्ध चेतना है और कुछ नहीं |
पन्द्रह से बीस मिनट तक इस भाव की वर्षा कर दें अपने अंत:करण में |
भाव जितना गहराता जाएगा शरीर हल्का और अपने भीतर प्रफ्फुलता मह्शूश  करेंगे आप |
पुन: ध्यान को आज्ञा चक्र पर लायें तीन से पांच मिनट तक |
और अपने वातावरण के प्रति अलर्ट होते हुए ध्यान से बाहर आ सकते हैं |
देखने में साधारण यह  ध्यान आपके जीवन को बदल सकता है | कर के तो देखें |
ॐ ॐ ॐ

एक त्राटक प्रयोग


एक  पेपर  पर  चित्र  में  दिखाए  अनुसार  एक  तस्वीर बना  ले  |
तस्वीर  बनाने  की  विधि
सफ़ेद  कागज पर  एक  बड़े 1  रुपया के सिक्के के  बराबर एक  वृत्त  बना कर काले रंग से रंग   लें  |

पूर्व तैयारी
रात्री  में  ग्यारह  बजे  के समय  कमरे  में जब मद्धिम प्रकाश हो  अपने   आँख से  तीन फीट की दूरी  पर दीवाल पर आकृति को   साट ( चिपका ) दें  |
ध्यान रहे आकृति  और  आपके आंख  की  दूरी  तीन  फिट  हो  | आकृति  को इस तरह  दीवाल पर लगायें जिससे की आपको अपने सर को अधिक  झुकाना  या  उठाना    पड़े |
अब आराम से बैठ जाएँ |
सामने  आकृति पर अपलक दृष्टि को जमा दें पांच मिनट तक |
एक दो बार पलक झपका लें फिर आकृति को अपलक देखें पांच मिनट तक |
इस क्रम को चार बार दुहरायें यानी पांच पांच मिनट के अंतराल पर कुल बीस मिनट तक |
अब उठ कर अपने आँख को ठंढे पानी से धोएं |
बीस मिनट रोज नियमित समय पर करें |
यह एक त्राटक प्रयोग है और यह आपके एकाग्रता को बढ़ा देगा आश्चर्यजनक ढंग से | आपके आँख में एक तेज दिखाई देने लगेगा | और भी काफी  लाभ और अनुभूतियाँ होगी |
प्रयोग करते समय का अनुभव |
जब आप यह प्रयोग करेंगे तो कभी कभी  काली आकृति का रंग सुनहला दिखाई देगा प्रथम प्रयोग में हीं | कभी कभी आकृति गायब भी हो जायेगी | कभी कभी आकृति धीरे धीरे छोटी होती जायेगी या बढती  जायेगी | कभी कभी आकृति बहुत तेजी से घूमती हुई नजर आएगी |
कुछ भी हो यह त्राटक प्रयोग आपको जारी रखना है इससे कोई नुक्सान नहीं | ख़ास कर विद्यार्थियों के लिए यह मेमोरी बढाने एकाग्रता बढाने में काफी  लाभदायक  है |
 ॐ ॐ ॐ

शनिवार, 4 मार्च 2017

ध्यान स्वयं को बदलने का रसायन है


आप कहतें हैं हैं ध्यान करना चाहता हूँ किन्तु ध्यान नहीं लगता | अब इस पर मनन करें ये कौन चाह रहा है की ध्यान करूँ और ये किसके कारण ध्यान नहीं लगता | ये ध्यान चाहने वाला आपका आत्मा है और मन के द्वारा व्यक्त हो रहा है मन के द्वारा व्यक्त होना इसकी मजबूरी है क्यूंकि वर्तमान में आत्मा के पास अभियक्ति का साधन नहीं है मन के सिवा | जब व्यक्ति आत्मज्ञानी हो जाता है ब्रह्मज्ञानी हो जाता है तो आत्मा अपने आप को रोंवें रोंवें से अभिव्यक्त करने लगती है | किसी ब्रह्मज्ञानी के समीप बैठ कर देखें | आप कहते हैं ध्यान नहीं लगता ध्यान कौन नहीं लगने दे रहा है ये आपका मन हीं ध्यान नहीं लगने दे रहा दूसरा कोई बाधक नहीं है |
 जब मन ध्यान में रोड़े अटकाए तब मन को अनुशासन से संयमित करें ( अथ योगानुशासनम ) | अनुशासन योग का | और योग क्या  योगशचितवृतिनिरोध:  मन के वृतियों यानि मन के स्वाभाव को रोकना योग है | तो मन के स्वाभाव को कैसे रोकें दृढ संकल्प से | संकल्प करें ध्यान करने का चाहे मन बार बार भटके किन्तु प्राण प्राण से संकल्प करें की आज ध्यान लगा कर हीं दम लूँगा मन को इधर उधर नहीं भटकने दूंगा बल्कि मन को जोर जबरदस्ती से हीं सही ध्यान कि ओर प्रेरित करूँगा | बार बार प्रयास से मन ध्यान कि ओर प्रेरित होने लगेगा निश्चित हीं |
आपका मन ध्यान के लिए प्रेरित हो ऐसा परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ |

ॐ 

सोमवार, 23 मई 2016

भूत प्रेतों का अस्तित्व

भूतों (Ghost )  के आकर , रंग,  रूप  आदि  जानने की इच्छा प्राय : लोगों के  मन  में  होती  है | सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक रामानन्द  सागर जब अपनी फिल्म कोहेनूर की शूटिंग के लिए बदीनाथ गये थे तो उनकी वहां भेंट परमार्थलोक नामक धर्मशाला के संचालक स्स्वामी सर्वदानन्द से हुई | उन्हीं के अधीन एक और स्वामी थे जिन्हें वे छोटे स्वामी कहते थे | छोटे स्वामी  ने भूत प्रेत सिद्ध कर रखे थे | उनसे जो कुछ जानकारी प्राप्त हुई , उसका विवरण श्री रामानन्द सागर ने 28 जून 1981 के धर्मयुग नामक पत्रिका में दिया है | छोटे स्वामी जी से उन्हें मालूम हुआ कि प्रेत का अकार साधारणतया दिखाई नहीं देता | ऐसा  लगता है कोई चीज हवा में तैर रही है | जिन्हें प्रेत सिद्धि प्राप्त  होती है वही इन्हें हर समय देख सकता है | इनसे हर समय बात कर सकता है | रूप रंग इनका बड़ा विचित्र होता है | आँखों की जगह गड्ढे , नाकों की जगह भी गड्ढे | सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रेतात्माओं के पैर नहीं दिखते , और जब ये बोलते हैं तब सामान्य आदमी को लगता है की कहीं आसपास से मिनमिन ..........मिनमिन .... की इ आवाज़ आ रही है | सुनने वालों की समझ में इनकी कोई बात नहीं आएगी लेकिन सिद्धि प्राप्त लोगों को इनकी सारी बातें समझ में आएगी |
 भूत प्रेत सम्बन्धित इस तरह की और  सच्ची घटनाओं को पढना चाहते हैं तो कृपया टिप्पणी करें 


बुधवार, 27 जनवरी 2016

तंत्र और भोग ( पंचमकार )

वर्तमान में तन्त्र अपने वास्तविक अर्थ को खो चुका है | जबकि तन्त्र के माध्यम से अपने जीवन तथा दूसरों के जीवन में भी क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है | आम तौर पर तन्त्र का परिचय पंच “ म ” कार के सेवन के तौर पर मिलता है किन्तु आज  पंच “ म ”  कार अपना वास्तविक अर्थ खो चुका है | पंच “ म ” कार है – मद्य , मांस , मुद्रा , मीन (मत्स्य ) तथा मैथुन |
       इन पंच “ म ” कारों का तन्त्र में सेवन का विधान है | लेकिन इसका वास्तविक अर्थ क्या है आइये इस पर विचार करते हैं –
मद्य
आगमसार के अनुसार मद्यपान किसे कहते हैं ----
"
सोमधारा क्षरेद या तु ब्रह्मरंध्राद वरानने|
पीत्वानंदमयास्तां य: स एव मद्यसाधक:||
जिह्वा मूल या तालू मूल में जिह्वाग्र ( जीभ का अगला भाग ) को सम्यकृत करके ब्र्ह्मारंध्र ( सिर के चोटी से ) से झरते हुए आज्ञा  (भ्रू मध्य ) चक्र  के चन्द्र मंडल से हो कर प्रवाहमान अमृतधारा को पान करने वाला मद्य साधक कहा जाता है |  
       यह है वास्तविक मद्यपान |
मांस
आगमसार के अनुसार मांससाधक  --
"
माँ शब्दाद्रसना ज्ञेया तदंशान रसना प्रियान |
सदा यो भक्षयेद्देवि स एव मांससाधक: ||"
म का अभिप्राय जिह्वा से है शब्दों पर या वाणी पर नियन्त्रण रखने वाला मांस साधक कहलाता है | जागतिक प्रपंच से वाक् निवृति करने वाला मांस साधक होता है | खेचरी मुद्रा लगाने वाला साधक मांस साधक होता है क्योंकि खेचरी मुद्रा लगाने से बात करने या बोलने का विकल्प समाप्त हो जाता है और मन सदैव खेचरी मुद्रा के क्रिया पर हीं लगा होता है |
यह है  मांस साधना का अभिप्राय |
मत्स्य
       आगमसार के अनुसार --
"
गंगायमुनयोर्मध्ये मत्स्यौ द्वौ चरत: सदा|
तौ मत्स्यौ भक्षयेद यस्तु स: भवेन मत्स्य साधक:||"
मत्स्य का अभिप्राय साँस के नियन्त्रण से है | इडा ( बायाँ नथुना ) रूप गंगा तथा पिंगला ( दायाँ नथुना ) रूपी यमुना में स्वांस और प्रस्वांस रूप दो मत्स्यों का निवास माना जाता है | ई श्वांस प्रश्वांस का नियन्त्रण करने वाला और शुष्मना ( दोनों श्वांसों का साथ चलना ) में श्वांस चलाने वाला मत्स्य साधक होता है |
मुद्रा
आगमसार के अनुसार  "मुद्रा"  –
"सहस्त्रारे महापद्मे कर्णिका मुद्रिता चरेत|
आत्मा तत्रैव देवेशि केवलं पारदोपमं||
सूर्यकोटि प्रतीकाशं चन्द्रकोटि सुशीतलं|
अतीव कमनीयंच महाकुंडलिनियुतं|
यस्य ज्ञानोदयस्तत्र मुद्रासाधक उच्यते||"
सहस्त्रार के महापद्म में कर्णिका के भीतर पारद की तरह स्वच्छ निर्मल करोड़ों सूर्य-चंद्रों की आभा से भी अधिक प्रकाशमान ज्योतिर्मय सुशीतल अत्यंत कमनीय महाकुंडलिनी से संयुक्त जो आत्मा विराजमान है उसे जिन्होंने जान लिया है वे मुद्रासाधक हैं|
मैथुन
यामल तंत्रनुसार मैथुन  -
शहस्त्रारे बिन्दु कुंडली मिलानाछिवे ,
मैथुनम परम दिव्यं यातिनाम परिकीर्तितं ....
अर्थात मूलाधार से उठकर कुंडलिनी रूपी शक्ति का शहस्त्रार स्थित परम ब्रह्म शिव से सायुज्य ही मैथुन है |
       तन्त्र शास्त्र में  सृष्टि और संहार के विषय में चिन्तन करना मैथुन कहलाता है | पराशक्ति और जिव के संयोग को भी मैथुन कहते हैं | मात्र स्त्री के साथ सम्भोग करने वाले को स्त्री निषेवक कहते हैं न की मैथुन साधक | मैथुन परम तत्व है जो सृष्टि स्थिति तथा संहार का कारण है | सुदुर्लभ ब्रह्म  ज्ञान की सिद्धि मैथुन से हीं होती है | मैथुन का गुह्य अर्थ समाधि है जिस अवस्था में योगी ईश्वर की स्तुति तथा सृष्टि और संहार के चिन्तन में अपने को भी भूल जाता है |

इति  

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

माँ लक्ष्मी की आप इज्जत करेंगे तो माँ लक्ष्मी आपकी इज्जत करेगी

लक्ष्मी की कृपा चाहिए तो खूब भाव से लक्ष्मी की पूजा करें | लक्ष्मी के पूजा के लिए कई  निश्चित दिन निर्धारित हैं किन्तु कोई आवश्यक नहीं की आप निश्चित दिन हीं उनकी पूजा करें | बल्कि लक्ष्मी की पूजा आप अपने नित्य दैनिक कर्मों के प्रारम्भ में कर सकते हैं | आप चाहे जिस किसी भी देवी देवता के उपासक हों आप अपने नित्य दैन्दिनी में रोज दो मिनट लक्ष्मी को अवश्य याद करें , कि वे अपनी कृपा आप पर करें |
       मैं प्रारम्भ में दार्शनिक ख्याल वाले  विचार रखता था | मुझे लगता था धन को महत्व देना पागलपन है किन्तु सत्य यह है की वगैर धन के आपका एक समय का भोजन भी नहीं चल सकता | यह बोध होने पर मैं लक्ष्मी को थोडा बहुत महत्व देने लगा | सभी को अपने सत्कर्मों को करते हुए नित्य लक्ष्मी का ध्यान करना हीं  चाहिए |
       
यह धारणा है कि माँ लक्ष्मी की कृपा पापियों उल्लुओं ( मूर्खों ) पर विशेष होती है यह सत्य नहीं है | यह मात्र अपने आप को भुलावा देने का विचार है और कुछ नहीं | लक्ष्मी की कृपा पुण्यात्माओं पर हीं होती है | अब मुझे मालूम है आप सैकड़ों पापियों के उदाहरण मेरे सामने रख देंगे | किन्तु ध्यान रहे पापी और पुण्यात्मा के निर्णय की  धारणा आपकी है  इश्वर की नहीं |
       कुछ लोगों का मत है कठोर परिश्रम हीं लक्ष्मी को आकर्षित कर सकती है किन्तु कई कठोर परिश्रमी फांके में दिन गुजारते देखे गये हैं | लक्ष्मी की कृपा उसी पर होगी जो लक्ष्मी को महत्व देगा ये मेरा अनुभव है |
       लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए शास्त्रों में हादी विद्या तथा कादी विद्या का वर्णन है जिस पर मैं फिर कभी चर्चा करूँगा |

       माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु एक साधारण विधान है आप अपने नित्य के  पूजा के क्रम में हीं माँ लक्ष्मी को याद करें | आप जहाँ अपना धन रखते हैं उस धन को नित्य देखें  अगरबती या धूप नित्य उस धन को दिखाएँ और माँ लक्ष्मी से प्रार्थना करें कि वो आप पर कृपा करें |माँ लक्ष्मी को प्रार्थना करें की “ हे माँ लक्ष्मी आप मुझ पर विशेष कृपा करें जितना धन अभी मेरे पास है उसमे दिन दोगुनी रात चौगुनी वृद्धि हो | हे माँ आप मुझ पर नित्य कृपा करें |

परावलंबन निषेध ध्यान |

आराम से सुखासन में बैठ जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी हो तनी हुई नहीं | निचे बैठने के लिए कोई आसन बिछा लें सूती ऊनी   या कुश का कुछ भी   | ...