सत्य दर्शन : सूक्ष्म दर्शन
हिंदी के प्रसिद्ध समालोचक एवं विद्वान् डा ० नगेन्द्र एक बार अपने
मित्र मंडली के साथ पूज्य बाबा के दर्शन के लिए गये | रास्ते में एक सोती में नदी
का पानी आ गया था | कपडा खोल कर हीं उसे पार किया जा सकता था | वहां से आश्रम लगभग
एक मील दूर था | सभी मित्र तो अंडरवियर पहने पार कर गये किन्तु डा ० नगेन्द्र को
इस प्रकार नदी पार करना जंचा नहीं | वे किनारे पर हीं एक पेंड की छाँव में बैठ गये | उनके मन में बड़ा मलाल था कि यहाँ तक आ कर
भी वे बाबा के दर्शन नहीं कर सके | चुपचाप बैठे रहने से उन्हें झपकी आ गयी |
इतने में लगा की कोई जटा
जूट धारी साधु उनके समीप आया - “ क्यों बच्चा
तू दर्शन को नहीं गया |”
-
“ सोती
में पानी है , कमर से उपर तक | पार नहीं कर सका |”
-
तू डा ०
नगेन्द्र है न ? रस सिद्धांतों का पंडित ?”
-
“ जी |”
-
अच्छा ,
अच्छा | कोई बात नहीं | बाबा तो सर्वत्र है , सर्वव्यापी है | तू यहीं दर्शन कर ले
|”
-
अहंकार
घोर शत्रु है , वह प्रभु से मिलने नहीं देता | बच्चा तू काम करता जा | शास्त्र
महान है | उनके आलोक को फैला |”
-
“ जी |”
-
यह
प्रसाद ले और बोल
ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम :
और नगेन्द्र भक्त सोच कि
“संसार पीछे छूट गया और तू भगवान के सम्मुख है |
कल्याण है |”
फिर बाबा चले गये | उनकी आकृति बड़ी भव्य थी |
निर्वसन दिगम्बर रूप | डा ० नगेन्द्र ने बड़ा संतोष अनुभव किया |
इसी बीच उनके मित्र बाबा के दर्शन कर वापस आ गये
थे | उन लोगों ने उन्हें जगाया – “ लो बाबा ने यह
प्रसाद विशेष तौर पर तुम्हारे लिए दिया है |
डा ० नगेन्द्र ने प्रसाद
ग्रहण किया | मित्रों से जो बाबा का वर्णन मिला , वह हू ब हू उस बाबा से मिलता था
, जिन्होंने कुछ हीं क्षण पूर्व उन्हें दर्शन दे कर कृतार्थ किया था | वे अचरज में
पड़े थे | तो क्या बाबा ने स्वयं सूक्ष्म शरीर में दर्शन दे कर इन्हें कृतार्थ किया था ?
मित्र बाबा की प्रशंशा
करते अघा नहीं रहे थे और डा ० नगेन्द्र गुमसुम मन हीं मन बाबा को अपना प्रणाम निवेदित कर रहे थे |
देवरहा बाबा के चरणों में नमन _/\_
साभार : ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त