शनिवार, 8 अगस्त 2015
शुक्रवार, 7 अगस्त 2015
देवरहा बाबा के चमत्कार 16
बाबा अन्तर्धान हो गए !
मोतिहारी के कृष्णाधार शर्मा एक बार कुछ
साथियों के साथ बाबा के दर्शनों में बनारस गये | ट्रेन लेट होने के कारण वे लोग
बाबा के मंच के पास बारह बजे दिन में नौका के द्वारा पहुंचे | मंच गंगा की धारा
में रामनगर की तरफ था | जब वे लोग ‘ हरे राम संकीर्तन ’ करते हुए मंच के पास
पहुंचे तो देखा कि बाबा मंच से उतर कर धारा में स्नान कर रहे हैं | वे लोग संकीर्तन
करते हुए नौका में हीं किनारे रुक गए | सबकी नजर बाबा की तरफ हीं थी | सभी बाबा के
मंच तक आने का इंतजार करने लगे |
यह क्या ? बाबा स्नान करते करते जल के
भीतर बैठ गये | सभी लोग आश्चर्य से देख रहे थे | कीर्तन की धुन अविराम चल रही थी |
सबकी नज़रें घड़ी पर थी | ठीक
पचपन मिनट तक जल के भीतर रहने के बाद बाबा अचानक मंच के उपर खड़ा हो कर जटा का जल
निचोड़ते हुए दिखाई दिए | जल से निकल कर मंच पर चढ़ते हुए उन्हें किसी ने
नहीं देखा | एक हीं साथ जल समाधि और अन्तर्धान होने के दृश्य उनलोगों के समक्ष
प्रकट हुए |
बाबा इसी तरह घंटों जल में रहने के
अभ्यासी थे | अन्तर्धान हो जाते थे | यह बाबा जैसे – अनंत विभूति सम्पन्न योगिराज
संत शिरोमणि के लिए हीं संभव है |
देवरहा बाबा के चरणों में सादर प्रणाम
_/\_
साभार : प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से
प्राप्त
आप अपनी राय टिप्पणी के द्वारा अवश्य दें
गुरुवार, 6 अगस्त 2015
देवरहा बाबा के चमत्कार 15
ब्रह्म दर्शन !
श्री सुरेन्द्र नारायण सिंह जगदीशनन्दन कॉलेज , मधुबनी , ( बिहार )
में दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक थे | वे वेदांत का अध्यन कर रहे थे | उन्होंने
ब्रह्म के बारे में पढ़ा कि ब्रह्म प्रकाश स्वरुप है | उनके मन में यह जिज्ञासा हुई
कि क्या उस परम प्रकाश को देखा जा सकता है |
जब वे पूज्य बाबा के पास
पहुंचे तो उन्होंने वेदान्त की बात कही और ब्रह्म के बारे में जिज्ञासा की |
- “ हाँ बच्चा ! वेदान्त की बात ठीक है | ब्रह्म
प्रकाश स्वरुप है |”
- “ क्या उस प्रकाश को देखा जा सकता है |”
- “ हाँ , हाँ क्यों नहीं लेकिन तुम इस योग्य नहीं
हुए हो कि पूर्ण ब्रह्म का प्रकाश देख सको | हाँ माया मिश्रित प्रकाश देखा जा सकता
है | मैं तुम्हें अभी अनुभव कराता हूँ |”
पूज्य बाबा ने उन्हें एक यौगिक क्रिया बताई |
उन्होंने उस साधना को उनके निर्देशानुसार किया | भीतर का अन्धकार फटने लगा |
प्रकाश की किरणें छिटकने लगी | ज्योति तीव्र होती गयी | प्रकाश की तीव्रता
सुरेन्द्र जी की सहन शक्ति से बाहर हो गयी | थोड़ी देर बाद हीं उन्हें वहां से
लौटना पड़ा |
श्री बाबा आनन्द विभूति सम्पन्न हैं वे ब्रह्म स्वरुप हैं | भगवान की
ज्योति देखना सद्गुरु की करुणा के बिना संभव नहीं है |
देवरहा बाबा के चरणों में प्रणाम _/\_
साभार – प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त
बुधवार, 5 अगस्त 2015
देवरहा बाबा के चमत्कार 14
यहाँ भी छल !
बाबा मंच पर आसीन थे दर्शनार्थियों की भीड़ लगी
हुई थी | स्त्री , पुरुष , धनी ,गरीब सभी थे | अनपढ़ और विद्वान् सभी | पैदल चल कर
आने वाले और कार से चल कर आने वाले भी | बबूल बन की छाँव | बाबा एक एक कर या पांच
सात को इकठ्ठे बुला कर बातचीत कर रहे थे , आशीष दे रहे थे | एक आदमी सहमा सहमा
उपस्थित हुआ | बड़ा दयनीय चेहरा था | बहुत हीं दुखी लग रहा था | किसी को भी देख कर
दया आ जाए ऐसा चेहरा बनाया था उसने | लेकिन बाबा की आँखें तो भीतर भेद कर देखती है
, उपर का आवरण निरर्थक है | सामने वाला अभिनय में चाहे जितना भी दक्ष हो , बाबा के
सामने पड़ते हीं कच्चा चिट्ठा खुल जाता है |
उस
मायूस चेहरे वाले के भीतर प्रवेश करते हीं न जाने क्यों बाबा क्रोधित हो गये | जोर की कडकती आवाज़ बाहर
तक आई | सभी सहम गये | क्षण भर को कीर्तन की लहर थम गयी |
-
“ तू महापापी है घोर नरक में जायेगा | उपर से छल
करता है और दिन भर पाप में धंसता जाता है | जा , जा |”
वह व्यक्ति कुछ गिडगिडाया | कुछ आरजू करना चाहा |
-
“ समय नष्ट करना घोर पाप है |तू अपने साथ मेरा और
खड़े इन भक्तों का समय नष्ट क्यों करता है
? तू दिन रात पाप करता रहे और हम उसे धोते
रहे | मनुष्य अपने कर्मों का फल हीं पाता है नीच | यहाँ भी छल करता है !”
लेकिन बाबा ने उसके तरफ भी एक केला फेंक हीं दिया
– “ ले प्रसाद और भाग
-
अपने को सुधार ! समय नष्ट मत कर ! ”
फिर बाबा सहज हो गये | दूसरे जत्थे की पुकार हुई !
वह व्यक्ति पीछे हटते हटते गेट के बाहर आ गया | लोग उसे घूर रहे थे | वह और दयनीय
लग रहा था | रामधुन की मंद हुई ध्वनी को लक्ष्य कर बाबा ने प्रेमपूर्वक कहा
-
“ नामकीर्तन जारी रखो बच्चा | ”
और फिर जय सियाराम , जय सियाराम की ध्वनि जोर जोर
से उठने लगी |
देवरहा बाबा के चरणों में सादर प्रणाम _/\_
-
साभार ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त
शनिवार, 1 अगस्त 2015
देवरहा बाबा के चमत्कार - 13
बतासे में कीड़ें !
मार्च 1952 में कुम्भ के शुभ अवसर पर परम
पूज्य बाबा हरिद्वार में हीं थे | 13 अप्रैल को कुम्भ का मुहूर्त था | उन्हीं
दिनों श्री बाबा के दर्शानार्थ एक बड़ा हीं दीन बिद्यार्थी आया | वह धारा में
प्रवेश कर मंच तक पहुंचा और जोर जोर से रोने लगा |
परम दयालु बाबा ने छात्र से रोने का कारण
पूछा | छात्र ने जो कुछ भी बताया उसका तात्पर्य था कि वह किसी असाध्य रोग से
ग्रस्त था | डाक्टरों के हिसाब से उसका बचना कठिन था | वह बाबा की शरण में आया था
|
श्री बाबा ने उसके हाथ में कुछ बतासे
गिराए और उन्हें खा जाने का आदेश दिया | परन्तु छात्र उन्हें खाने से झिझकने लगा |
उसे बहुतेरे कीड़े कुलबुलाते नजर आने लगे |
उसने चाहा की उन छोटे छोटे कीड़ों को झाड कर निकाल दे और तब बतासे को खा कर आदेश का
पालन करे | उसने बाबा से अपनी झिझक का कारण बतलाया | बाबा उसे लक्ष्य कर रहे थे |
बाबा ने छात्र से कुछ क्षण मौन रह कर कहा –“ देखो तो अब कीड़े हैं
या नहीं |”
बिद्यार्थी ने बतासे को गौर से देखा | अब कीड़े नहीं थे | बतासे बिलकुल साफ़ थे |
-
“ अब तो कीड़े नहीं दिखते |” छात्र ने कहा
-
“ तो प्रसाद ग्रहण करने में कोई हानि नहीं है ,
क्यों बच्चा ?” बाबा ने कहा |
-
“ जी ! ” कहकर छात्र ने बतासे को मुंह में डाल लिया |
-
“ देख बच्चा तेरी बिमारी अब बिलकुल भाग गयी | यदि
कीड़े तुम्हें दुबारा दिखाई देते तो रोग का निवारण सचमुच नहीं होता |” बाबा ने कहा
बिद्यार्थी गदगद था | उसकी आँखों में
कृतज्ञता के आंसू थे | उस छात्र के निकट खड़े भक्त विस्मित थे | उन्हें बतासों में
पहले हीं कोई दोष नजर नहीं आया था | फिर
छात्र को उसमे कीड़े कैसे नजर आये ?
बाबा की लीला अपरम्पार है उनकी लीला वही
जानें |
देवरहा बाबा के चरणों में सादर नमन _/\_
साभार - ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से
प्राप्त
सदस्यता लें
संदेश (Atom)