पतों का कमाल !
बात बहुत पहले की है | श्री इंद्र सहाय की
पत्नी कमला देवी अस्पताल इलाहबाद मर भर्ती थी | वे काफी रुग्ण थी उनका ओपरेसन करना पड़ा था | ओपरेसन के बाद इतना रक्त स्त्राव हुआ था की उनका ज़िंदा
बचना मुश्किल था | रात्री का समय था डॉक्टर उम्मीद छोड़ चुके थे |
इंद्र जी के चपरासी ने बताया कि एक महात्मा
त्रिवेणी मचान पर है और उनके सिद्ध होने की प्रसिद्धि है | रात में बाबा तक जाने
की हिम्मत श्री इंद्र जी को नहीं हुई | उन्होंने चपरासी को हीं बाबा तक भेजा |
चपरासी रात्री में हीं बदहवास बाबा के
मचान तक पहुंचा | उसका निवेदन सुन कर बाबा ने उसे एक पता (leaf) दिया और बोलें - “ बच्चा इसे ले जा सवेरे के
पहले यदि इसे उनके मुंह में डाल दे तो वे अच्छी हो जायेंगी ...........”
वह चपरासी लगभग दो बजे रात्री को त्रिवेणी
से चला और चार बजे के करीब अस्पताल पहुंचा | रोगी की हालत बिगडती जा रही थी |
चपरासी के पहुँचते हीं पता सहाय जी के पत्नी को खिलाया गया | पता खाने के तुरंत
बाद हीं रक्त का बहना बिलकुल बंद हो गया और वे सो गयीं |
उनकी नींद सवेरे आठ बजे खुली | उनका चेहरा
प्रसन्न चित एंव खिला हुआ था | ऐसा प्रतित हो रहा था कि वे बिलकुल स्वस्थ हो चुकी
थीं | जो उनके बचने की उम्मीद खो चुके थे वे आश्चर्यचकित थे | बारह बजे दिन में वे जिद्द कर के बाबा के दर्शन के
लिए त्रिवेणी गयीं | वहां बाबा ने उन्हें बहुत आशीर्वाद दिया |
“ बच्चा अब तुम्हे अस्पताल जाने की
आवश्यकता नहीं है | तुम निरोग हो तुम्हें कोई कष्ट नहीं है | तुम सीधे घर चली जाओ ”
बाबा ने कहा
इंद्र सहाय और उनकी पत्नी सीधे घर गयीं |
ये उनकी बाबा से पहली मुलाक़ात थी |
बोलिए तथा टिप्पणी में लिखिए “ देवरहा
बाबा की जय ”
बाबा को सच्चे मन से याद करने पर आज भी
बाबा भक्तों की पुकार सुनते हैं इसमें कोई शक नहीं है |
साभार ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से यह
लेख प्राप्त हुआ |
3 टिप्पणियां:
Devraha baba ki jai
Devraha baba ki jai
बाबा की जय। इस पुस्तक का नाम बताइये। कहाँ मिलेगी ?
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