धरती की प्यास बूझी
14 सितम्बर 1979 को उतर प्रदेश के
तत्कालीन राज्यपाल श्री तपासे श्री बाबा के दर्शनों में लार रोड पहुंचे | उन्होंने
प्रार्थना की – बाबा वर्षा बिलकुल नहीं हुई है | लोग बेहाल हैं | सूखा से जनता की
रक्षा के लिए महराज जी कृपा कर जलवृष्टि करवायें |
श्री बाबा ने मुस्कुराते हुए कहा – “ यह
सूखा नेताओं के पाप से पड़ा है सभी नेता पाप में लीन है जिससे प्रकृति कुपित हो उठी
है | ” इसके साथ हीं श्री बाबा ने अनेक विलक्षण एवं अदभुत भविष्यवाणियों के साथ
आश्चर्यजनक विवरण प्रस्तुत किये | तपासे के बात से बाबा प्रसन्न दिखते थे | एक
नेता तो मिला जो दर्शन के समय अपने लिए , अपनी सता के लिए , अपनी कुर्सी और परिवार
के लिए कुछ न मांग कर समग्र जनता के लिए कुछ मांगने आया है | श्री बाबा जब प्रसन्न
होते तो प्रसाद की वर्षा करते हैं | बाबा ने फलों का प्रसाद इतना दिया की एक बड़ी
गठरी हो गयी | छुट्टी होने पर जब राज्यपाल
का सुरक्षा अधिकारी प्रसाद की गठरी उठाने लगा तो तपासे ने मना कर दिया | उन्होंने
पुन : साष्टांग दंडवत किया और स्वयं गठरी उठा कर पैदल ही घेरे के बाहर खड़ी अपनी
कार कि ओर चलने लगे |
श्री बाबा ने प्रसन्नता से हँसते हुए ताली
बजा कर कहा – “ देखो , किसान का बेटा बोझ ढो रहा है | इसे बोझ के भार ढोने से गरीब
लोगों के बोझ ढोने का अनुभव होगा |”
‘ तप सुखप्रद दुःख दोष नसावा |’बोझ ढो कर
महामहिम ने तप किया श्री तपासे की प्रार्थना स्वार्थ के लिए नहीं जन जन के हित के
लिए थी | महापुरुष इससे अति प्रसन्न होते हैं | श्री बाबा ने भी प्रसन्नतापूर्वक
तपासे की श्रधा भावना को देखते हुए उनकी प्रार्थना सुनी | दर्शन के कुछ हीं देर
बाद जोरों की वृष्टि हुई | मेघों ने उमड़ घुमड़ कर प्यासी धरती की प्यास बुझाई | यह
संवाद 16 सितम्बर , 1979 के दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ |
आज भी श्री बाबा की कृपा सदैव बरसती है |
“ देवरहा बाबा के चरणों में सादर नमन _/\_
”
साभार – प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से
प्राप्त
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