सपने में किया प्रवेश !
पाण्डेय नर्मदेश्वर सहाय , सम्पादक ‘ अंजोर
’ एक ख्यातिलब्ध साहित्यकार और वकील हीं नहीं थे वरन एकांत साधक भी थे , इसे कम
लोग हीं जानते हैं | वे परमयोगी श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की शिष्य परम्परा में
श्री वनमाली बनर्जी ( भागलपुर ) से दीक्षित थे |एक दिन वे बाबा के श्री चरणों में
मंच के निकट बैठे थे | अचानक बाबा ने प्रश्न किया – “ अरे भक्त कुछ करते हो ?”
- जी हाँ प्रभु थोडा बहुत |
- अपनी क्रिया दिखा सकते हो ?
- क्षमा करें प्रभु ! गुरु की आज्ञा है कि क्रियाएं
गुप्त हैं ,परिधि के बाहर के लोगों में इन्हें नहीं दिखाना |
बाबा हँस कर चुप हो गये सहज हीं और और्व
बातें होने लगी | कुछ देर बाद बाबा ने प्रशाद दे कर सबकी छुट्टी कर दी | सहाय जी
भावुक व्यक्ति थे | उनका मन दुविधा में पड़ा रहा | घर पर आ कर वे खा पी कर सो गये |
स्वप्ने
में हीं उन्होंने देखा कि वे अपने मकान के दूसरी मंजिल पर स्थित एक कमरे में बैठे
हैं | सामने वनमाली बनर्जी बैठे हैं और योगाभ्यास करा रहे हैं |
इसी
बिच सहाय जी के पुत्र ने आ कर सूचना दी की एक महात्मा पधारे हैं | बनर्जी साहब ने
कहा “ सादर लिवा लाओ |” थोड़ी देर बाद देवरहा बाबा उपर आये | वनमाली बनर्जी बड़े
प्रेम से उन्हें मिले और दोनों अगल बगल बैठ गये | सहाय जी की योगक्रिया थोड़ी देर
के लिए रूक गयी | वे दुविधा में पड़े रहे | इसी समय उनके गुरुदेव बनर्जी साहब ने
कहा – “ अरे रुके क्यों हो ? तुम दिखाओ | इनमे और मुझमे कोई भेद न समझना | ”
गुरुदेव
की आज्ञा से सभी क्रियाओं की पुनरावृति सहाय जी ने की | क्रिया समाप्त होते हीं
नींद खुल गयी | सहाय जी स्वप्न का मर्म समझ गये | उन्हें बड़ा मानसिक क्लेश हुआ |
देवरहा बाबा को उन्होंने परिधि से बाहर क्यों माना | फिर उन्हें नींद नहीं आई | वे
प्रात: हीं उद्विग्न मन से देवरहा बाबा के पास जा कर उपस्थित हुए |
बाबा
स्नान करके ,कुश की आसनी लपेटे बड़ी तेजी से गंगा की धार से निकले और मंच पर चढ़ गये
| थोड़ी देर बाद कुटिया से बाहर आये |
सहाय
जी ने साश्रुनयन निवेदन किया – “ महराज
मुझे क्षमा करें | कृपा याचना के लिए आया हूँ | मुझसे बहुत बड़ा अपराध हुआ है |
- अरे भक्त इस प्रकार चंचल क्यों होते हो |
- मैं अपनी क्रिया दिखाने आया हूँ महराज !
- मैं तो देख चुका भक्त ! चिंता मंत करो | कष्ट
करने की जरूरत नहीं |
और सहाय जी सन्न रह गये | तो क्या सचमुच रात के स्वप्न में प्रभु दरी बाबा ने प्रभु श्री वनमाली बनर्जी के साथ सहाय
जी के क्रियाओं अवलोकन किया था ? तभी तो मुस्कान के साथ उन्होंने कहा था –“मैं तो
देख चुका |”
देवरहा बाबा के चरणों में सादर नमन _/\_
प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से साभार प्राप्त
2 टिप्पणियां:
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Very thoughtful Pandey narmdeshwar sahay my nanaji and anjor is mama ji
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