बतासे में कीड़ें !
मार्च 1952 में कुम्भ के शुभ अवसर पर परम
पूज्य बाबा हरिद्वार में हीं थे | 13 अप्रैल को कुम्भ का मुहूर्त था | उन्हीं
दिनों श्री बाबा के दर्शानार्थ एक बड़ा हीं दीन बिद्यार्थी आया | वह धारा में
प्रवेश कर मंच तक पहुंचा और जोर जोर से रोने लगा |
परम दयालु बाबा ने छात्र से रोने का कारण
पूछा | छात्र ने जो कुछ भी बताया उसका तात्पर्य था कि वह किसी असाध्य रोग से
ग्रस्त था | डाक्टरों के हिसाब से उसका बचना कठिन था | वह बाबा की शरण में आया था
|
श्री बाबा ने उसके हाथ में कुछ बतासे
गिराए और उन्हें खा जाने का आदेश दिया | परन्तु छात्र उन्हें खाने से झिझकने लगा |
उसे बहुतेरे कीड़े कुलबुलाते नजर आने लगे |
उसने चाहा की उन छोटे छोटे कीड़ों को झाड कर निकाल दे और तब बतासे को खा कर आदेश का
पालन करे | उसने बाबा से अपनी झिझक का कारण बतलाया | बाबा उसे लक्ष्य कर रहे थे |
बाबा ने छात्र से कुछ क्षण मौन रह कर कहा –“ देखो तो अब कीड़े हैं
या नहीं |”
बिद्यार्थी ने बतासे को गौर से देखा | अब कीड़े नहीं थे | बतासे बिलकुल साफ़ थे |
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“ अब तो कीड़े नहीं दिखते |” छात्र ने कहा
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“ तो प्रसाद ग्रहण करने में कोई हानि नहीं है ,
क्यों बच्चा ?” बाबा ने कहा |
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“ जी ! ” कहकर छात्र ने बतासे को मुंह में डाल लिया |
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“ देख बच्चा तेरी बिमारी अब बिलकुल भाग गयी | यदि
कीड़े तुम्हें दुबारा दिखाई देते तो रोग का निवारण सचमुच नहीं होता |” बाबा ने कहा
बिद्यार्थी गदगद था | उसकी आँखों में
कृतज्ञता के आंसू थे | उस छात्र के निकट खड़े भक्त विस्मित थे | उन्हें बतासों में
पहले हीं कोई दोष नजर नहीं आया था | फिर
छात्र को उसमे कीड़े कैसे नजर आये ?
बाबा की लीला अपरम्पार है उनकी लीला वही
जानें |
देवरहा बाबा के चरणों में सादर नमन _/\_
साभार - ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से
प्राप्त
1 टिप्पणी:
Devhara baba kon hai or abhi kya ye jivit hai
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